चाणक्य नीति: माता पिता के लिए किसी दुश्मन से कम नहीं होती ऐसी औलाद, इससे औलाद न होना ही अच्छा

चाणक्य नीति : आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में माता पिता की संतान के कुछ ऐसे अवगुण बताये हैं जिनके कारण वह संतान अपने माता पिता के लिए किसी दुश्मन के समान हो जाती है। ऐसी औलाद होने से अच्छा की माता पिता निःसंतान ही जीवनयापन कर लें। इन अवगुणों वाली औलाद माता पिता को हमेशा दुःख और कष्ट ही देती है। 

                                                                   

                                                                               
चाणक्य तक्षशिला विश्व विद्यालय के आचार्य थे। उन्होंने अपने जीवन काल में राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, सामाजिक शास्त्र और कृषि शास्त्र से सम्बंधित कई महान ग्रन्थ लिखे, जिनका अनुसरण करके आज भी उनके अनुयायी इनका लाभ लेते हैं। हज़ारों साल पहले कही गयीं उनकी नीतियां आज भी अनुसरणीय हैं। आप भी आचार्य चाणक्य की नीतियों पर अमल करके जीवन को खुशहाली और सुख शांति से भर सकते हैं। आचार्य का नीतिज्ञान कठोर अवश्य है लेकिन आमजन के लिए फायदेमंद है। आचार्य ने अपने नीतिशास्त्र में संतान से सम्बंधित कुछ अवगुणों का उल्लेख किया है।  चाणक्य के अनुसार जिस संतान में ये अवगुण होते हैं वो अपने माँ बाप के लिए दुश्मन के समान होते हैं, आइये जानते हैं कि ये अवगुण क्या हैं :
 

आचार्य चाणक्य संतान के आचरण के बारे में कहते हैं कि सैंकड़ों नालायक संतानों से, एक बुद्धिमान और लायक संतान ही बेहतर है। ऐसी संतान माता पिता के दुःख दर्द को समझने वाली होती है यदि संतान नालायक है तो उसके कर्म माता पिता को हमेशा दुःख ही देते हैं। 

चाणक्य नीति के अनुसार, जो औलाद बुरी संगति में रहती है वो बुद्धिहीन और सर्वत्र बेइज्जती करवाने वाली होती है। नशेड़ी संतान का मर जाना ही अच्छा होता है जो नशे और दूसरी बुरी आदतों के चलते अपने माँ बाप के धन और सम्मान का नाश करता हो। ऐसी संतान के मरने से दो चार दिन ही दुःख होता है लेकिन जीवित रहने से माता पिता को जीवन भर दुःख और कष्ट रहता है। 

आचार्य के अनुसार, जो संतान मुर्ख हो या पढ़ने लिखने के बावजूद भी नाकारा हो तो उसके माता पिता का जीवन कष्ट में गुजरता है। जवानी में माँ बाप अपनी मेहनत से जीवन यापन कर सकते हैं लेकिन बुढ़ापे में अगर संतान नाकारा और मुर्ख हो तो माँ बाप को काफी कष्ट हो सकता है।  

चाणक्य के अनुसार उस गाय का कोई मूल्य नहीं होता जो दूध न देती हो। इसी तरह उस संतान का कुछ मूल्य नहीं जो अपने माँ बाप की सेवा न करती हो। संतान माँ बाप की सेवा करने वाली होनी चाहिए न कि केवल मेवा खाने वाली। 

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