ताबो: हिमालय की गोद में बसा हुआ स्वर्ग, जहाँ मिलती है आत्मा को शान्ति

भारत के हिमालयी प्रदेश हिमाचल के जिला लाहुल स्पीति में प्राचीन स्पीति नदी के किनारे पर एक खूबसूरत गाँव है, ताबो, जो अपनी प्राचीन बौद्ध संस्कृति और अद्वितीय प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह गाँव राष्ट्रीय राजमार्ग 505 पर काज़ा और रिकांगपियो के बीच में बसा है जिसकी समुद्रतल तल से ऊंचाई लगभग 10500 फ़ीट है। यह गाँव "हिमालय का अंजन्ता" नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहाँ के सैंकड़ो साल पुराने मठ की गुफाएं और उनके भित्ति चित्र विश्व भर के लोगों को अपनी आकर्षित करते हैं। 

                                                                             
Photo: Ai


ताबो मठ निर्माण
 
ताबो गाँव में बने मठ ताबो मठ के नाम से मशहूर हैं इनकी स्थापना 996 ईस्वी में तिब्बेत के बौद्ध धर्म के महान सन्त लोचन रिंचेन जंग्पो ने की थी, ये बौद्ध धर्म के महान विद्वान थे। जब जंग्पो ने पहले बार इस स्थान को देखा तो उन्हें मह्सूस हुआ कि यह स्थान ध्यान और आध्यात्मिक शिक्षा के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है इसलिए वो वही रहने लगे और ताबो में बौद्ध मठों की स्थापना की। कहा जाता है कि उन्होंने इस स्थान को "देवताओं का स्थान कहा" और यहाँ मठ का निर्माण शुरू किया, उनके इस निर्माण कार्य में स्वयं देवताओं ने उनकी सहायता की थी। कहा जाता है कि जब रात के समय में काम बन्द कर दिया जाता था तो रात में देवी देवता काम को पूरा करते सुबह जब लोग देखते तो उन्हें निर्माण कार्य में अद्भुत प्रगति होती हुई दिखाई देती थी। यह कहानी आज भी ताबो के मठों से जुड़े लोगों और श्रद्धालुओं में गहराई से जुड़ी हुई जान पड़ती है। 


ताबो का इतिहास 
ताबो मठ में कुल 9 देवालय हैं, जिनमे चुकलाखण्ड, सेरलाखण्ड और गोखण्ड प्रमुख हैं, देवालयों के भीतर बौद्ध धर्म से जुड़े अनेक चित्र और प्राचीन मूर्तियां निर्मित हैं, जो तिब्बेत की अद्भुत और उत्कृष्ट कला को दर्शाते हैं। इन आकर्षक और सुन्दर चित्रों के माध्यम से भगवान बुद्ध के सम्पूर्ण जीवन और काल चक्र के बारे में बताया गया है। मठों से अति प्राचीन तिब्बती धर्म ग्रन्थ जो तिब्बती भाषा में लिखे गए हैं और बौद्ध धर्म की पुरानी पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं। इन मठों का निर्माण बालू मिटटी और मिटटी की ईंटों से हुआ है। साल 1996 में ताबो के इन अद्भुत मठों ने जब अपनी स्थापना के 1000 साल पुरे किये तो उस समय ये मठ विश्व भर की नज़र में आ गए। उससे पहले बौद्ध धर्म से जुड़े लोग ही इन मठों के बारे में जानते थे। 

ताबो की गुफाएं 
ताबो गांव के चारों ओर कई गुफाएं हैं जो साधकों और बौद्ध धर्म के विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। अभी भी साधक यहाँ मन की शान्ति और बुद्ध द्वारा बताये गए शांति के मार्ग को पाने के लिए साधना व् ध्यान करते हैं। ताबो की कुल गुफाओं मे से एक गुफा फू  ही सुरक्षित अवस्था में है बाकि की गुफाओं को भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा सरंक्षित करने के प्रयास जारी हैं। इन गुफाओं में बहुत से चित्र अभी भी सुरक्षित स्थिति में हैं। इन गुफाओं में जंगली जानवरों के चित्र उकेरे गए हैं। इन मठों में 60 से 80 बौद्ध भिक्षुक प्रतिदिन बौद्ध धर्म के ग्रंथो का अध्ययन करत्ते हैं।  

                                                                                
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एक प्रसिद्ध कहानी  
यहाँ के बारे में एक रोचक कहानी काफी प्रसिद्ध है है। कहते हैं कि यहाँ मठ के आस पास "अदृश्य सरंक्षक शक्तियां " हैं जो मठ की रक्षा करती हैं। ताबो मठ को बुराई और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए अदृश्य शक्तियां यहाँ निवास करती हैं, एक बार की बात है जब ताबो गाँव पर एक प्राकृतिक आपदा आई। स्पीति घाटी में भारी भूस्खलन हुआ जिसमे बहुत से गाँवों को नुकसान हुआ। लोगों को डर था कि ताबो मठ भी भूस्खलन की चपेट में आ जाएगा लेकिन जब भू स्खलन मठ के पास पहुंचा तो जैसे कोई अदृश्य दीवार बन गई हो जिसने भूस्खलन को वहीँ पर रोक लिया जिससे मठ को कोई नुक्सान नहीं हुआ, गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि यह उन्ही अदृश्य दिव्य शक्तियों की कृपा थी जिससे मठ बच गया।  

ताबो की सुन्दरता 
ताबो केवल धार्मिक या सांस्कृतिक स्थल ही नहीं है बल्कि यह एक अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान भी है। चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड़, नीला साफ़ आकाश, और एकदम शांत वातावरण यहाँ स्वर्ग जैसा एहसास दिलाता है। दुनिया भर के फोटोग्राफर्स और प्रकृति प्रेमियों के लिए ये स्थान एक आदर्श आकर्षण है। बॉलीवुड की कई फिल्मों में यहाँ की ख़ूबसूरती को  दर्शाया गया है।   
   
ताबो के आस पास के दर्शनीय स्थल  
काज़ा   -                                 47  किलोमीटर        11,980  फ़ीट  
किब्बर -                                 65 किलोमीटर         13,796  फ़ीट 
की       -                                 54 किलोमीटर        13,504  फ़ीट 
डंखर    -                                 32 किलोमीटर        12,763   फ़ीट 
पिन वैल्ली नेशनल पार्क -         33 किलोमीटर          11,500 फ़ीट 
उपरोक्त सभी स्थान बौद्ध दर्शन के अनुयाईओं और पर्यटकों के लिए ख़ास हैं यह भी बौद्ध मठ हैं और  स्थल काफी खूबसूरत इलाके हैं। 

ताबो कब और कैसे पहुंचे 
ताबो पहुँचने के लिए सबसे पहले मनाली आना होता है, वहीँ से सफर लाहुल स्पीति घाटी का सफर शुरू होता है। मनाली से सड़क मार्ग से यहाँ पहुंचा जा सकता है। सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट मनाली से पहले भुंतर में है। गर्मियों के मौसम में खास कर मई से अक्टूबर का समय बेहतर है जब मौसम सुहावना होता है और सड़कें खुली होती है। सर्दियों में यहाँ आना मुश्किल होता है क्योंकि ये इलाके बर्फ से ढके रहते हैं और सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। 


ताबो एक ऐसा स्थान है जो यहाँ आने वाले हर व्यक्ति की आत्मा को शांति और मन को सुकून देता है ,यदि आप हिमालय की गोद में प्रकृति, संस्कृति और अध्यात्म का अनुभव करना चाहते हैं तो एक बार ताबो की यात्रा अवश्य करें। 

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