बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सबको डर लगता है, इस अनजाने डर को हम घबराहट या भय भी कहते हैं। दरअसल ये हर मनुष्य का स्वाभाव है जैसे कभी कभार रोना या हंसना। ये सब स्वाभाविक है। डर या घबराहट हमारे मन का भाव है और हम सब किसी न किसी परिस्थिति में डरते हैं। ऐसा कोई नहीं जिसे डर या घबराहट नहीं होती हो। बीते जीवन में हमारे साथ कोई घटना ऐसी हुई होती है जिसकी छाप हमारे मन मस्तिष्क में छप जाती है जो रह रह कर हमारे डर का सबब बनती है।
दुनिया में कोई विरला ही होगा जिसे डर या घबराहट नहीं हुई हो हालाँकि यह एक स्वाभाविक भाव है लेकिन जब यह भाव हमारे रोजमर्रा की जिंदगी पर हावी होने लगे तो इसे अपने से दूर रखना जरुरी हो जाता है। आज के ब्लॉग में इस बारे में बातें होंगी जिनपर अमल करके इस डर या घबराहट को दूर किया जा सकता है।
डर से भागे नहीं बल्कि इसका सामना करें :
जब भी डर का भाव मन में आने लगे तो इससे पीछा छुड़ाने की कोशिश न करें, इससे डरना नहीं है बल्कि इसका सामना करना है। डर तभी तक हमें डरा सकता है जब तक हम इसका सामना नहीं करते। कई बार तो हमारा डर बिना किसी कारण के होता है, कोई बात या घटना हुई भी नहीं होती लेकिन उसके बारे में बार बार सोच कर हम अपने मन में इस अनजान डर को आने देते है। इसलिए उस चीज़ को बार बार सोचना नहीं चाहिए। आपके सोचने भर मात्र से इस दुनिया में कुछ भी नहीं होने वाला। कहीं ऐसा न हो जाये, कहीं वैसा हो गया तो.. ये सब फालतू के वहम हैं। इन वहमों को मत पालिये
खुद से सवाल करें :
डर का भाव जब मन पर हावी होने लगे तो अपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिये। अपने आप से बात कीजिये कि क्या वास्तव आपको जिस विचार के कारण डर लग रहा है वह सच में इतनी बड़ी है कि आपको डरना चाहिए। कई बार यह डर मन की कल्पना होती है। आँखे बंद कर बिलकुल शांत होकर बैठ जाएँ और बिना किसी अन्य विचार या भाव के केवल डर के बारे में सोचें कि क्या सच में स्थिति इतनी भयावह है कि डरा जाये। डरा जाये या नहीं ये कुछ हद तक आपकी बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है इसका इस्तेमाल डर को दूर भगाने में करें।
ध्यान करें :
जब आप ध्यान लगाते हैं तो यह सबसे अच्छा उपाय हो सकता है इस अनजान डर या घबराहट को दूर करने का। ध्यान करने से निरर्थक भाव मन में नहीं आते हैं और ये डर भी तो एक निरर्थक भाव ही है। ध्यान में आप ब्रह्माण्ड की दिव्या शक्तियों से जुड़ सकते हैं और इससे बड़े से बड़ा डर भी मन में नहीं आता। जब आपकी आत्मा परमात्मा से Connect हो जाये तो फिर कैसा डर, भय और घबराहट। अगर आप को ध्यान लगाना नहीं आता तो आपको बता दूँ कि कुछ नहीं करना बस शांत से माहौल में किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ जाएँ रीढ़ की हड्डी सीधी रहे तो बहुत अच्छा, अब अपनी सांसो को देखिये अंदर आ रही हैं बाहर जा रही हैं। अंदर- बाहर, अंदर- बाहर। साँस प्राकृतिक होनी चाहिए। बस सांसों की इसी माला को फेरते रहिये। हर आती जाती सांस को ध्यान से महसूस कीजिये। धीरे धीरे आप ध्यान में आ जाओगे।
योग करें :
प्रतिदिन निरंतर योग के अभ्यास से तन मन और स्नायु तंत्र में मजबूती आती है, स्थिरता आती है जिससे आप मानसिक तौर पर मजबूत बनते हैं और भय डर का भाव आपके मन पर हावी नहीं हो पाता। योग के अलावा सुबह शाम की सैर भी काफी फायदेमंद हो सकती है। योग और ध्यान से आपकी सोच बदल सकती है। आप हमेशा Positive ही सोचते हैं तो डर घबराहट मन में नहीं आ सकते।
दोस्तों के साथ समय बिताएं :
दिन का कुछ समय अपने दोस्तों सम्बन्धियों के साथ भी बिताएं ताकि मन बहल जाये। मन में ख़ुशी और प्रसन्नता के भाव आएंगे तो डर का भाव कोसों दूर रहेगा। अपने दोस्तों के साथ सुख दुःख बाँटना अपने आप में एक प्राकृतिक चिकित्सा है जिसका फायदा आप उठा सकते हैं।
संगीत सुनें :
दिन भर की थकावट के कारण शरीर के साथ मन भी थकता है जिस कारण नेगटिव विचार मन में आ जाते हैं और विचार घबराहट को जनम दे सकते हैं इसलिए अपना मनपसन्द संगीत सुनें। हो सके तो हल्का मधुर संगीत सुनें जैसे पुराने फ़िल्मी गीत, रोमांटिक ग़ज़लें, मंत्रोचारण संगीत। इससे मन की उदासी भी दूर होगी और घबराहट और डर का भाव भी आपके मन पर हावी नहीं होंगे। वास्तव में डर घबराहट का भाव, एक विचार है इसे सोचना या न सोचना कुछ हद तक आपके वश में है। आप इस विचार पर नियंत्रण कर सकते हैं और अपनी जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।
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