ये बात तो आप हमेशा ही सुनते आये हैं कि व्यक्ति को उसके बुरे या गलत कर्मो की सजा जरूर मिलती है लेकिन कुछ परिस्थितियों में आपसे जुड़े दूसरे लोगों के बुरे कर्मो की सजा भी आपको भुगतनी पड़ सकती है जानिए इस बारे में विद्वान् और महान नीतिज्ञ चाणक्य क्या कहते हैं : -
आचार्य चाणक्य आज से हज़ारों साल पहले हुए। गुप्त साम्राज्य की नींव रखने में उनकी काफी भूमिका थी। नन्दवंश को समाप्त करके चंद्र गुप्त मौर्या को राजा बनाया और आगे चल कर गुप्त साम्राज्य ने ही भारत वर्ष के कई हिस्सों पर राज किया। आचार्य चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। वे तक्षशिला विश्व विद्यालय के आचार्य थे। उन्होंने अपने जीवन काल में राजनीति शास्त्र , अर्थशास्त्र , सामाजिक शास्त्र और कृषि शास्त्र से सम्बंधित कई महान ग्रन्थ लिखे, जिनका अनुसरण करके आज भी उनके अनुयायी इनका लाभ लेते हैं। हज़ारो साल पहले कही गयीं उनकी नीतियां आज भी अनुसरणीय हैं। आचार्य कहते हैं कि 3 लोग यदि कोई गलत कर्म करते हैं तो उनके कर्मों की सजा आपके लिए भी हानिकारक हो सकती है :
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरूस्तथा ।।
1 . इस श्लोक में आचार्य बताते हैं की जिस देश या राज्य का राजा अपने मंत्रियों , पुरोहितों या सलाहकारों के ऊपर ही निर्भर हो कर रह जाता है तो उस राज्य के ये लोग अपने कर्तव्यों का पालन ठीक तरीके से नहीं करते हैं। ऐसे में ये लोग कई बार गलत निर्णय या गलत काम कर लेते हैं जिस वजह से राज्य और प्रजा की हानि होती है जिसका जिम्मेवार राजा को ही ठहराया जाता है। इन लोगों के गलत कर्मो की सजा राजा और प्रजा दोनों को ही भुगतनी पड़ सकती है।
2. चाणक्य कहते हैं कि विवाह के बाद स्त्री और पुरुष का संबंध काफी नाज़ुक और जिम्मदारीपूर्ण हो जाता है यदि विवाह के बाद पत्नी कोई बुरा या गलत कर्म करती है या अपने कर्तव्य का पालन नहीं करती है तो पति को समाज में लोगों के बीच कई बुरी बातें सुनने को मिल सकती हैं या पति कोई बुरा कर्म या व्यभिचार करता है तो पत्नी को भी उसके बुरे कर्मो की सजा भुगतनी पड़ सकती है इसलिए दोनों को ही एक दूसरे को अच्छी राह दिखानी चाहिए।
3. श्लोक में आचार्य जिस तीसरे व्यक्ति के बारे में कहते हैं वो है शिष्य , यदि कोई शिष्य गुरु के सिखाये सदमार्ग पर चल कर अच्छा कर्म करता है तो गुरु की भी प्रशंसा होती है और यदि वही शिष्य गलत काम या कुकर्म करे तो उसकी सजा गुरु को भी अपमानित हो कर भुगतनी पड़ सकती है।
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