Chankya Niti : आचार्य चाणक्य ने बताया, शब्दों का सही प्रयोग क्यों महत्वपूर्ण है

आचार्य चाणक्य को कौन नहीं जनता आचार्य चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। वे तक्षशिला विश्व विद्यालय के आचार्य थे। उन्होंने अपने जीवन काल में राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, सामाजिक शास्त्र और कृषि शास्त्र से सम्बंधित कई महान ग्रन्थ लिखे, जिनका अनुसरण करके आज भी उनके अनुयायी इनका लाभ लेते हैं। हज़ारों साल पहले कही गयीं उनकी नीतियां आज भी अनुसरणीय हैं। आप भी आचार्य चाणक्य की नीतियों पर अमल करके जीवन को खुशहाली और सुख शांति से भर सकते हैं। आचार्य का नीतिज्ञान कठोर अवश्य है लेकिन आमजन के लिए फायदेमंद है। आज के इस पोस्ट में, आचार्य बताते हैं कि मनुष्यों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले शब्दों में विशेष ताकत होती है, किसी के द्वारा कहे गए शब्द दूसरे को ख़ुशी दे सकते हैं और कभी दुखी भी कर सकते है। चाणक्य ने अपनी में कहा कि शब्दों का इस्तेमाल बहुत ही सोच समझ कर करना चाहिए। शब्दों में इतनी शक्ति होती है कि वे किसी भी स्थिति व् परिस्थिति को बदल सकते हैं। जैसे कुछ अच्छे शब्द किसी को खुश कर सकते हैं और कुछ बुरे शब्द किसी को क्रोधित भी कर सकते हैं। इसीलिए चाणक्य ने शब्दों को काफी महत्वपूर्ण बताया है :

                                                             



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शब्दों की ताकत 

चाणक्य का कहते हैं कि हमें हमेशा अपनी बात कहते हुए सही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। सही शब्दों का चयन ही इस बात को तय करता है कि हमारी बात समझी जाएगी या नहीं। सामने वाला आपको बात को आसानी से समझ जाये, इसके लिए ऐसे कारगर शब्दों को चुनना चाहिए। उदाहरण के लिए जब किसी से बात करें तो उसकी भावना को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए जिससे आपकी बात सटीक तरीके से समझी जाएगी। 

जिम्मेदारी वाले शब्दों का चयन 

बातचीत करते हुए हमें एक एक शब्द की ताकत और जिम्मेदारी को ध्यान में रखना चाहिए। अपनी कही हुई बात के प्रति हमें जिम्मेदार होना चाहिए जिससे किसी की भावना को ठेस न पहुंचे। चाणक्य के अनुसार जो लोग अपने शब्दों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार नहीं होते वे अक्सर खुद भी और दूसरों को भी दुखी कर देते हैं। जैसे, किसी बात को बड़े रूखेपन से कहना कि वह बात किसी को बुरी लग जाये। अपनी बातों का प्रभाव समझते हुए सोच समझकर बोलना चाहिए। 


शब्दों की अहमियत समझना  

मान लीजिये आपका कोई रिश्तेदार किसी परेशानी में है तो जाहिर तौर पर आप उसे परेशानी से बाहर निकालने की कोशिश करेंगे, इसके लिए आप उससे बात करते समय हिम्मत देने वाले शब्द कहेंगे और कहने भी चाहिए लेकिन अगर आपके शब्दों में कुछ शब्द ऐसे आ जाते हैं या उसे परेशां करने वाले शब्द बोल देते हैं तो उसकी परेशानी और बढ़ जाएगी और उससे मनमुटाव भी हो सकता है। इसलिए नाप तोलकर बोलना चाहिए। नपे तुले शब्दों का महत्व काफी ज्यादा है। 

संवाद की कला 

चाणक्य बताते हैं कि किसी से बात करना एक कला भी है। शब्दों की ताकत को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। गलत शब्दों का प्रयोग आपके बनते हुए काम को बिगाड़ सकता है। वहीं अगर विपरीत स्थिति में भी आप प्रभावशाली शब्दों का प्रयोग करते हैं तो बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं। दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। कब कहाँ क्या बोलना है यह ज्ञान होना चाहिए ,यही है बात करने की कला। निरन्तर अभ्यास से इस कला को निखारा जा सकता है।  


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