आचार्य चाणक्य आज से हज़ारों साल पहले हुए। गुप्त साम्राज्य की नींव रखने में उनकी काफी भूमिका थी। नन्दवंश को समाप्त करके चंद्र गुप्त मौर्या को राजा बनाया और आगे चल कर गुप्त साम्राज्य ने ही भारत वर्ष के कई हिस्सों पर राज किया। आचार्य चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। वे तक्षशिला विश्व विद्यालय के आचार्य थे। उन्होंने अपने जीवन काल में राजनीति शास्त्र , अर्थशास्त्र , सामाजिक शास्त्र और कृषि शास्त्र से सम्बंधित कई महान ग्रन्थ लिखे, जिनका अनुसरण करके आज भी उनके अनुयायी इनका लाभ लेते हैं। हज़ारो साल पहले कही गयीं उनकी नीतियां आज भी अनुसरणीय हैं।
आप भी आचार्य चाणक्य की नीतियों पर अमल करके जीवन को खुशहाली और सुख शांति से भर सकते हैं। आचार्य का नीतिज्ञान कठोर अवश्य है लेकिन आमजन के लिए फायदेमंद है।
आज के इस लेख में, चाणक्य कहते हैं :
" व्यक्ति जितना चतुर, चालाक होता जाता है ,उतना ही उसका दिल मरता जाता है। "
आचार्य चाणक्य के कहने का आशय है कि जैसे जैसे कोई व्यक्ति जितना चालाक या चतुर होता जाता है वह भावनाहीन होता जाता है। व्यक्ति जैसे जैसे जरूरत से ज्यादा चालाक हो जाता है तो दूसरे लोगों के प्रति उसके दिल की भावनाएं मर जाती हैं। उसकी किसी दूसरे आदमी के पार्टी प्यार , समर्पण, किसी के भले के बारे में सोचना, किसी पर दया दिखाना और स्नेह आदि की भावना ख़त्म हो जाती है।
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जब कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा चतुर हो जाता है तो वह हर चीज़ में सिर्फ नफा और नुकसान ही देखता है। उसे अपने पराये का या दूसरों की मान मर्यादा का भी ख्याल नहीं रहता। उसके मन में पैसों के प्रति लालच बढ़ता जाता है, नाते रिश्ते सिर्फ एक औपचारिकता बन कर रह जाते हैं। धीरे धीरे सभी आसपास के लोग ऐसे स्वभाव वाले लोगों से दूरियाँ बना लेते हैं। ऐसे लोगों से दुरी में ही भलाई है।
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