बिना दर्शन किये मणिमहेश से लौट रहें है कई श्रद्धालु || बिना आदेश वहां पहुंचना असंभव है

हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा में 5650 मीटर की ऊंचाई में है कैलाश और इस कैलाश में एक स्थान है जहाँ से बहुत दूर एक ऊँची पर्वत चोटी पर मणि के रूप में भोले बाबा के दर्शन होते हैं, शिव का एक नाम महेश भी है इसलिए इस जगह को मणिमहेश के नाम से जाना जाता है। लाखों श्रद्धालु हर साल यहाँ अपने भोले बाबा के दर्शन करने के लिए आते हैं। हर यहाँ अगस्त - सितम्बर के महीने में मणिमहेश यात्रा सदियों से होती रही है। ज्यादार यात्री हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर से यहाँ आते हैं लेकिन अन्य देशी और विदेशी भक्तों की गिनती भी कम नहीं। लेकिन देवों के भी देव महादेव के दर्शन मनुष्य मात्र के लिए आसान नहीं हैं। आगे पढ़िए... 

                                                                                                  


मणिमहेश पहुँचने के लिए बहुत ही कठिन मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। तरह तरह की कठिनाइयों का सामना कदम कदम पर करना पड़ता है। 5650 मीटर की ऊंचाई पर मौसम पल पल बदलता रहता है अभी धूप है तो आधे घंटे बाद बर्फ और बारिश का दौर शुरू हो जाता है, बारिश के बाद पहाड़ों की कच्ची पगडंडियां हर पल दुर्घटना को न्यौता देतीं हैं कभी भी पैर फिसलने का डर बना रहता है, कहीं उफनते नाले हैं कहीं गहरी खाइयां हैं। 8 घंटे की सीधी चढ़ाई सांस फूला देती है और फिर वही साँस रुक जाने का डर।  




इस मुश्किलों भरी यात्रा के लिए महादेव के आदेश का होना अनिवार्य है। बिना उनकी रजामंदी और आदेश के वहां कोई नहीं पहुँच सकता, जो लोग यात्रा के लिए घर से तो निकल जाते हैं और अपने वाहन हड़सर में पार्क करके पैदल यात्रा शुरू भी कर देते हैं, वो मणिमहेश तब तक नहीं पहुँचते जब तक भोले बाबा का आदेश न हो। बीच रास्ते से ही उन लोगों को वापिस लौटना पड़ता है। बहुत से लोग वापिस लौटे हैं बिना भोले के दर्शन किये, वो लोग इन सभी चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना नहीं कर पाते। जो लोग कैलाश तक पहुँचते हैं वो सभी शिव द्वारा बुलाये गए होते हैं। और वो लोग सभी मुश्किलों को आसानी से पार कर लेते हैं। 

 

मणिमहेश में कैलाश के ऊँचे ऊँचे पर्वतों की तलहटी में एक प्राकृतिक झील है जो साल के ज्यादातर समय जमी रहती है और 2 -3 महीने के लिए पिघलती है उसी समय यह यात्रा जिला प्रशासन द्वारा आयोजित होती है। इसी पवित्र झील में स्नान करने के लिए लाखो शिवभक्त यहाँ आते हैं। यह यात्रा शिव के प्रिय सावन माह से शुरू होती है और भाद्रपद माह में सम्पन्न हो जाती है। जन्माष्टमी के दिन यहाँ छोटा स्नान होता है और राधाष्टमी के दिन बड़े स्नान के साथ यात्रा सम्पन्न हो जाती है। इस बार भी कृष्ण जन्माष्टमी के दिन छोटे स्नान का आयोजन हुआ जिसमे 50 हजार श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद प्रशासन ने की थी लेकिन पहुंचे लाख से ऊपर। 


 
श्रद्धालु विश्राम करने के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढ़ते रहे लेकिन जगह न मिलने के कारण रात में भी चलते रहे। रुक रुक कर बीच बीच में पथरीले पत्थरों पर झपकी भी लेते रहे। सबका कोशिश मणिमहेश स्थित डल झील तक पहुँचने की थी इसके लिए हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार थे। 
इन्ही लोगों में एक थे पंजाब के जालंधर से सौरभ सेठी, जो पहली बार मणिमहेश की यात्रा पर निकले थे। हड़सर से पैदल यात्रा शुरू करने के बाद जोत का गोठ तक आसानी से पहुँच गए  लेकिन असली यात्रा तो अब शुरू हुई थी जब लगभग 26 किलोमीटर का पथरीला रास्ता तय करना था। अब यात्रा कठिन होती जा रही थी फिर भी काफी दूर दुनाली नमक जगह पर पहुँच पहुँच गए ,यहाँ से डल  झील के लिए 2 रस्ते हैं , एक रास्ता थोड़ा कम दूरी का है जो नाले पर बने पुल के टूट जाने के कारण बंद था और दूसरा रास्ता काफी लम्बा और सीधी चढ़ाई वाला है जिसे पार करते करते सौरभ सेठी के पांवों में छाले पड़ गए, साँसे फूलने लगी थीं लेकिन मन में भोले से मिलने की आस थी तो निरंतर चलते रहे। रात के दस बज चुके थे ,शरीर पूरी तरह टूट चूका था और रुकने के लिए कोई जगह नहीं मिल रही थी तो कही से एक टेंट मिला जिसका किराया 2000 रूपए था। टेंट किराये पर लिया और वहीँ रुक गए। सुबह 6 बजते ही चलना शुरू कर दिया और इस तरह 15 घंटे में भोलेनाथ के आदेश के अनुसार यह यात्रा पूरी कर डल झील तक पहुँच गए।  

  

 मणिमहेश की यात्रा आसान नहीं है लेकिन चलने का सामर्थ चाहिए और साथ में ही शिव बाबा का बुलावा। शिव बाबा के बुलावे के बिना हज़ारों लोग बीच रास्ते से ही वापस लौट आते हैं। कुछ के साथ कोई अनहोनी हो जाती है कुछ मुश्किलों का सामना नहीं कर पाते। मणिमहेश केवल और केवल महादेव के आदेश से ही जाया जा सकता है। अगर जाना हो तो मन में आस्था लेकर ही चलें। शिव तो ऊँचे कैलाश के ऊँचे पर्वतों पर ही निवास करते हैं इसलिए इन पहाड़ों पर चलते चलते मन में शिव का सिमरन करें तो अवश्य ही यह यात्रा आपके लिए मंगलमय होगी। 

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