हिमाचल प्रदेश को देव भूमि माना गया है क्योंकि यहाँ के कण कण में देवी देवता निवास करते हैं। हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत काफी समृद्धशाली रही है। यहाँ प्राचीन समय में निर्मित कई मन्दिर हैं जिन पर लोगों की अटूट श्रद्धा है। लोगों का देवी देवताओं की शक्तियों पर अटल व अटूट विश्वास है। यहाँ समय समय पर देवी देवता अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं। कहीं काहिका महोत्सव में देवता की शक्तियों से इंसान मर कर जिन्दा हो जाता है तो कहीं निश्चित समय पर देवता और डायनों का युद्ध होता है। ऐसा ही एक प्राचीन मन्दिर जिला चम्बा के भरमौर में है ये मन्दिर है धर्मराज यानि यमराज का।
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चम्बा के प्रसिद्ध चौरासी मन्दिर के साथ ही धर्मराज जी का मन्दिर है जो पुरे विश्व में इनका इकलौता मन्दिर है। इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि शरीर छूटने के बाद हरेक आत्मा को यहाँ आना होता है यहीं से उसकी परलोक यात्रा आरम्भ होती है। मृत्यु के बाद यमदूत व्यक्ति की आत्मा को इसी स्थान पर सबसे पहले लाते हैं। यहीं साथ में ही चित्रगुप्त जी का स्थान है जहाँ चित्रगुप्त आने वाली आत्माओं का सांसारिक लेखा जोखा बयान करते हैं। पाप पुण्य का हिसाब किताब करने के बाद ही निर्णय होता है कि आत्मा स्वर्ग लोक जाएगी या नरक में। यहाँ हर आत्मा का लेखा जोखा होता है इसलिए मरने के बाद हर आत्मा को यहाँ आना ही पड़ता है।
मन्दिर में सेवा करने वाले बाबा बृजेश गिरी बताते हैं कि मन्दिर के अढ़ाई पौड़ी स्थान पर मृत्यु को प्राप्त हुई आत्माएं आती हैं। अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं की मृत्युलोक की उम्र जब तक पूरी नहीं हो जाती तब तक वे आत्माएं इन्ही अढ़ाई पौड़ी में से आधी पौड़ी पर विश्राम करती हैं। पाप और पुण्य कर्म वाली आत्माएं बाकि की दो पौड़ियों पर विश्राम करती हैं। पुण्य वाली आत्माएं यहीं से वैकुण्ठ धाम यानि स्वर्ग लोक चली जाती हैं और पापी आत्माएं, जीवन में किये पापों का निपटारा होने तक यहीं पर रहती हैं।
यहाँ चौरासी मंदिर हैं जिनमे से अधिकतर मन्दिर देवों के देव महादेव के हैं। ये चौरासी मन्दिर चौरासी लाख योनियों को इंगित करते हैं जिनमे आत्मा को बार बार जन्म लेना पड़ता है। धर्मराज और चित्रगुप्त के इसी मन्दिर इस बात का निर्णय होता है कि आत्मा का अगला जन्म कौंन सी योनि में होगा।
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