हिमाचल प्रदेश हिमालय की गोद में बसा हुआ खूबसूरत राज्य है जहाँ की संस्कृति, वेशभूषा, खान- पान, रहन -सहन, परम्पराएं भारत के अन्य राज्यों से बिलकुल ही अलग हैं। हिमाचल के पहाड़ी इलाके अपनी प्राकृतिक ख़ूबसूरती को संजोये हुए हैं। बहुत सी ऐसी कुदरती चीज़ें हैं जो केवल पहाड़ी इलाकों में देखने को मिलती हैं। जिन्हें स्थानीय लोग और पर्यटक काफी पसंद करते हैं लेकिन इनमे कुछ चीज़ें सबको नसीब नहीं होतीं, ऐसी ही एक कुदरती चीज़ है, " गुच्छी "।
गुच्छी एक तरह का मशरूम है जो बरसात के मौसम में जब आसमान में बदल गरजते हैं तो उनकी गर्जना के कारण कुदरती तौर पर बान और देवदार के जंगलों में उगता है। कहीं कहीं चीड़ के जंगलों में भी गुच्छी मिलती है। जंगलों के अलावा गुच्छी नदी नालों के आस पास के नमी वाले स्वच्छ स्थानों पर जहाँ पर किसी का आना जाना नहीं होता, वहां पनपती है। यह एक मौसमी सब्ज़ी है जो मशरूम प्रजाति से सम्बन्ध रखती है। सर्दियों के अंत में गुच्छी प्राकृतिक तौर पर तैयार होती है। गुच्छी हिमाचल के कुल्लू , मण्डी, चम्बा, शिमला, सिरमौर, किन्नुर आदि जिलों के माध्यम हिमालयी क्षेत्रों में पायी जाती है। ये अमूल्य गुच्छी मैदानी इलाकों में नहीं पायी जाती है।
गुच्छी बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी है जो हिमाचल में बड़े बड़े होटलों के मेनू कार्ड की शान होती है। यह सब्ज़ी आम आदमी की पहुँच से बाहर है, क्योंकि ये बहुत ही महंगी सब्ज़ी है इसकी कीमत 18000 से लेकर 30000 रूपए प्रति किलो है। इसलिए इसे केवल दो तरह के लोग ही सब्जी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं, एक तो वो जिनके पास पैसा है और दूसरे वो जो इसे ढूंढ़ते हैं। गुच्छी सार्वजानिक रूप से नहीं मिलती, इसे ढूंढ़ने के लिए घने और गहरे जंगलों में जाना पड़ता है और यह भी सच है कि 10 में से 6 लोगों को ही गुच्छी मिलती है। ये सिर्फ किस्मत वालों को ही मिलती है। इसीलिए ये इतनी महंगी सब्ज़ी है।
गुच्छी को सब्ज़ी के अलावा औषध के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है कई तरह की औषधियों में यह इस्तेमाल होती है, दिल की कई बीमारियों के अलावा, ये कई अन्य रोगों में लाभदायक है। इसमें 32 प्रतिशत प्रोटीन, 17 प्रतिशत फाइबर और 38 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट्स पाए जाते हैं। इसीलिए ये शरीर काफी फायेदमंद है। इसके अलावा ये सूजन रोधी दवा में भी प्रुयक्त होती है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रोस्टेट और स्तन कैंसर जैसी घातक बीमारियों के संभावना को कम कर सकती है।
पहाड़ी इलाकों के ग्रामीणों के लिए गुच्छी आमदनी का एक अच्छा स्त्रोत है। अगर किस्मत अच्छी रहे तो गुच्छी से लाखों रूपए की आय भी हो जाती है। लेकिन इतनी मात्रा में गुच्छी बहुत कम ही मिलती है क्योंकि यह वज़न में काफी हलकी, आकार में छोटी होती है और एक दो दो की मात्रा में थोड़ी थोड़ी दुरी पर मिलती है। ज्यादा मात्रा में मिल जाने पर ग्रामीण इसे बाज़ारों में बेच देते है वैसे कई लोग इसे सब्ज़ी के तौर पर ही इस्तेमाल करते हैं। कुदरती तौर पर इसमें जो स्वाद और गुण पाएं जाते हैं वो मशरूम प्लांट में उगाये गए साधारण मशरूम से कहीं ज्यादा होते हैं। इसलिए इतनी महंगी होने के बावजूद गुच्छी खाने के शौक़ीन लोगों की कमी नहीं है।
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