हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत जिला मण्डी के एक और मनमोहक पहाड़ी देव स्थल के सफर पर एक बार फिर आपका हार्दिक स्वागत है दोस्तों। आज का सफर जिला मण्डी की सराज घाटी के बाहरी इलाके ( Outer Saraj ) का है। जगह का नाम है खोलानाल, मण्डी से खोलानाल लगभग 45 किलोमीटर है। खोलानाल से लगभग 5Km आगे से हमें पैदल सफर करना है देवदार के घने जंगलों में स्थित शुकदेव ऋषि के सदियों पुराने मन्दिर तक का। यह मन्दिर है दोस्तों गाँव बड़हूंगी में।
भयंकर सर्दी के कारण सुबह आज देर से सफर शुरू हुआ है दोस्तों लगभग 11 बजे निकला हूँ घर से, मण्डी से । अपनी बाइक से ही जाना है, अब देखते हैं कितने बजे पहुँचते है वहां जिन जिन लोगो से जानकारी हासिल की सभी ने बताया पैदल सफर ज्यादा है और चढ़ाई वाला है। सबसे पहले पहुँचा पण्डोह और यहाँ से गाँव, बाखली। बाखली में थोड़ा रुका। बाखली में ही दोस्तों, माता बगलामुखी का भी प्राचीन मन्दिर है जहां का सफर हम लोग कर चुके हैं। वो वाला Post भी आपको ब्लोग में मिल जाएगा दोस्तों बाकि यह नीचे लिंक दिया जा रहा है
बाखली से खोलानाल वाली सड़क (New Road to Right Hand Side ) पर सफर शुरू किया। यह सड़क बाहरी सराज के ऊँचें पहाड़ों पर है ये पहाड़ इतने ऊँचे हैं कि नीचे से ऊपर तक देखें तो सर से टोपी गिर जाये। बहुत ही सुन्दर नज़ारे देखने को मिलते हैं इस रोड पर, खासकर बाखली में बने नेचर पार्क और पंडोह बांध के नज़ारे ऊंचाई से बहुत सुन्दर देखने को मिलते हैं। इसी सड़क से एक और लिंक है, गाँव कल्हनी के लिए। कल्हनी से भी बड़हूँगी पहुंचा जा सकता है लेकिन काफी लम्बा पड़ेगा इसलिए मैंने खोलानाल से जाना उचित समझा। मैं लगभग 1.बजे गाँव खोलानाल में था। खोला नाल भी एक काफी सुन्दर गाँव है। पहाड़ो के खूबसूरत दृश्य, पहाड़ी खेतों में फैली हुई फसलें और पहाड़ी गाँवों के लोग, सफर को मजेदार बना देते हैं।
खोलानाल में थोड़ा Time रुकने के बाद अब गाँव कुण का सफर करना है दोस्तों। पहाड़ों की सर्पीली घुमावदार और ख़तरनाक सड़कें कहां से कहाँ पहुंचा दें कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकते। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि सड़क में इतना घुमाव है कि पहले बाखली, फिर शिवाबदार, फिर नागधार और उसके बाद हणोगी का पूरा इलाका दिखाई देता है। यह लगभग एक गोले के आधे चक्कर की तरह है। यह सड़क काफी खतरनाक है यदि थोड़ी सी भूलचूक, चलने में हो जाये तो सीधा नीचे व्यास नदी में ही पहुंचेंगे इसलिए बहुत ही सावधानी से ऐसे Road पर चलना चाहिए। हणोगी से यह सड़क, सामने के ऊँचे पहाड़ पर दिखाई देती है।
खोलानाल से कुण गाँव तक लगभग 4 कि०मी० है जिसके लिए लगभग आधा घंटा लगा। कुन गाँव भी काफी सुन्दर है। प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है यहाँ पुराने मकानों की अपनी ही ख़ूबसूरती है। लकड़ी के बने हुए मकान वैसे भी सुन्दर होते हैं पर यहाँ साथ में प्राकृतिक वातावरण है . कुछ भी नया बनाया हुआ नहीं है। एकदम शांत...
यहाँ Bike Park करने के बाद अब पैदल सफर करना है दोस्तों। पहाड़ी के पर चढ़ना है और फिर पहाड़ी के बिलकुल Top तक जाना है वहीँ पर स्थित है शुकदेव ऋषि का प्राचीन और मूल स्थान बड़हूंगी। माना जाता है कि यहीं पर ऋषि शुकदेव प्रकट हुए थे। यही से फिर बाद में देवता शिवाबदार के गाँव थट्टा चले गए थे, थट्टा में भी ऋषि का सुन्दर नवनिर्मित मन्दिर है जिसका सफर जल्द ही हम करेंगें दोस्तों। खैर, बड़हूंगी मन्दिर के लिए पैदल रास्ता भी अच्छा है, कहीं कहीं पर पथरीली चढ़ाई है, कहीं सपाट है और कहीं पत्थरों की सीढियाँ बनाई गयीं हैं। चढ़ने में कोई दिक्कत नहीं, खासकर जब रास्ता देवदार के घने जंगलो में से गुजरता हो।
सारी चढ़ाई चढ़ने के बाद शुकदेव मन्दिर के सुन्दर हरे भरे मैदान में प्रवेश होता है यह मैदान काफी बड़ा है ऐसे पहाड़ो पर इतना बड़ा मैदान होना ,इससे थोड़ी हैरानी होती है,खैर, मैदान के बारे में कहा जाता जाता है कि यहाँ पहले शमशान हुआ करता था जो यहाँ नए रंग रूप में आज भी मौजूद है। मैदान के साथ ही प्राचीन मन्दिर है। यह मन्दिर पैगोडा शैली में बनाया गया है जो तीन मंजिला है। पहाड़ी शैली और संस्कृति के अनुसार पूर्ण रूप से लकड़ी से ही निर्मित है, देवदार की लकड़ी के सैंकड़ो स्लीपरों से बना यह मन्दिर आज भी काफी सुन्दर लगता है और अच्छी स्थिति में है। मन्दिर के गर्भ गृह के लिए एक छोटा सा दरवाजा है जहाँ शुकदेव ऋषि की सुन्दर मूर्ति और कुछ प्राचीन अवशेष हैं। मुझे बताया गया कि इस दरवाजे को खोलने का अधिकार सिर्फ कुण गांव के लोगों को ही देवता ने दिया है दूसरे गाँव के लोग इस दरवाजे को नहीं खोल सकते। चारोँ तरफ कमरे बने हैं जैसे पहाड़ी मकानों में चौक होती है। यहाँ आस पास कोई घर नहीं कुछ कि० मी० के बाद गाँव हैं। नागपंचमी के दिन यहाँ मेला लगता है जो 5 दिन तक चलता है। मेले में काफी लोग आते हैं लेकिन बाकि दिन काफी ऊंचाई पर होने के कारण आस पास के गाँव के ही लोग मन्दिर तक जाते हैं या कभी कभार घुमक्कड़ों की कोई टोली यहाँ आ जाती है इस कारण यह जगह काफी साफ़ सुथरी, सुरम्य और शांत है जैसी कि होनी चाहिए।
मन्दिर के पीछे भी एक बड़ा मैदान है जो काफी बड़ा है। दूर दूर तक देवदार का जंगल है सिर्फ यही दो मैदान पुरे क्षेत्र में हैं। यहाँ से कुल्लू और लाहुल की ऊँची चोटियाँ साफ़ देखि जा सकती हैं। अगर रास्ता सुगम्य हो जाए तो यह स्थान पर्यटकों की पसन्द बन सकता है क्योंकि यह क्षेत्र आगे भीतरी सराज ( Inner Saraj ) का भी रास्ता है सड़कें तो अब बन गयीं हैं लेकिन जानकारी के अभाव के कारण बहुत से इच्छुक इन जगहों को देखने से वंचित रह जाते हैं। अब इस जगह में हणोगी से होकर भी आया जा सकेगा क्योंकि हणोगी से यहाँ के लिए सड़क मार्ग का काम ख़त्म होने वाला है, यहाँ आने वाले इच्छुक हणोगी के नए पुल से व्यास नदी को पार कर यहाँ पहुँच सकते हैं। सर्दियों में यहाँ हल्की बर्फ़बारी होती है उस वक़्त यहाँ का नज़ारा देखने लायक होता है। अगर यह Post आपको मिल गया है और अगर आप यहाँ आना चाहें तो खोलानाल या हणोगी होकर यहाँ आ सकते हैं, इस लेख से संबधित वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक दिया जा रहा है :-
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