हिमाचल ख़त्म हो रहा है : एक विश्लेषण, एक विचार

 



खूबसूरत हिमाचल, पवित्र हिमालय की गोद में बसा हुआ हिमाचल, जहाँ कण कण में देवी देवता वास करते हैं, प्राचीन समय में जहाँ भारत के श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने तप किया, आज अपने अस्तित्व को खोने जा रहा है, पहले अपनी पहाड़ी संस्कृति खोई और अब अपने गगनचुम्बी पहाड़ों को खो रहा है। विकास के नाम पर पहाड़ों का अंधाधुंध कटान और जंगलों का चरान हिमाचल की शुद्ध हवा के लिए नुक्सानदायक साबित हो रहा है।  



Roads in Himachal   Image: Lookhimachal


 देवदार के घने जंगलों के बीचों बीच महर्षि पराशर का निवास- Nanhani Prashar Temple, Mandi, Himachal Pradesh


हरे भरे ऊँचे पहाड़ों का सीना चीर कर बनाये जा रहे सड़कों के जालों के कारण हर साल बरसात के मौसम में पहाड़ दरकते रहते हैं जो सैंकड़ों जख्म दे जाते हैं। भारी बरसात में कहीं सड़कें ढ़ह जातीं हैं कहीं बड़ी बड़ी इमारते भी मिटटी में मिल जाती हैं। इतना सब कुछ नुक्सान होने पर भी हम केवल विकास की ओर उन्मुखी हैं। कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं और हरे भरे सुन्दर वन कटते जा रहे हैं , केवल और केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए। पूर्व समय में इस पहाड़ी राज्य में लकड़ी के मकान बनाए जाते थे जो पर्यावरण हितैषी थे। लेकिन अब उनकी जगह सीमेंट और ईंट पत्थरों ने ले ली है जिनका उत्पादन इन्ही पहाड़ों से होता है। हम अभी भी समझ नहीं रहे कि जितना ये पहाड़ कटेंगे उतना ही हमे और आने वाली पीढ़ियों का नुकसान होगा। विकास के नाम पर ऊँचे ऊँचे पहाड़ों को काट कर हेलिपैड, मंदिर, कॉलेज, बड़ी बड़ी इमारतें बनाई जा रहीं हैं, ये सब अपने और प्रकृति के साथ गलत किया जा रहा है। इन्ही वजहों से पहाड़ों से गिरने वाले झरने और निर्मल व स्वच्छ पानी के कुदरती स्त्रोत सूख रहें हैं। 


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अक्सर सरकार की घोषणाओं में सुना जाता है कि अमुक गाँव या स्थान को पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाया जाएगा, जिससे वहाँ देसी और विदेशी पर्यटकों की आमद बढ़ेगी और स्थानीय लोगों की आमदनी। अब सोचने वाली बात ये है कि प्राकृतिक रूप से सुन्दर जगह को और सुन्दर केवल प्राकृतिक तरीके से ही बनाया जा सकता है न कि वहां पर अंधाधुंध निर्माण कार्यो से। वैसे भी हम जानते हैं कि जहाँ जहाँ भी सड़क और बिजली पहुँच जाये वह अछूती जगह इंसानो की बढ़ती आमद की वजह से अपनी खूबसूरती त्याग देती है कई पहाड़ी देव स्थान और अन्य खूबसूरत इलाके इस बात के गवाह हैं। फटते हैं सुन्दर पहाड़ी इलाकों में जितनी ज्यादा गाड़ियां चलेगीं, जितने ज्यादा लोग आएंगे उतना ही ज्यादा प्रभाव उस जगह के पर्यावरण पर पड़ेगा और उतने ही ज्यादा पहाड़ दरकेंगे। हिमाचल के अधिकतर पर्यटन स्थल देवी देवताओ के निवास स्थान हैं उन देवी देवताओं के अपने नियम व कानून हैं जिनका पालन हर स्थानीय व्यक्ति करता है लेकिन बाहर से आने वाले लोग इन नियमों और कानूनों का उलंघन करते हैं जिस वजह से देवी देवता भी नाराज़ होते हैं जिस कारण देव भूमि को अक्सर देवताओं के कोप का भागीदार बनना पड़ता है। कहीं आसमानी बिजली गिरती है और कहीं बादल फटते हैं। अगर प्राकृतिक सौन्दर्य, प्राचीन पर्वत, कलकल करते झरने खत्म हो गए तो मानिये हिमाचल खत्म हो गया क्योंकि इन्ही चीज़ों से ही हिमाचल प्रदेश की पहचान है।

                                                                             



                                                          

प्रिय हिमाचल वासियों अब बातें करने या नारे, स्लोगन लिखने का वक्त नहीं, बल्कि इस देवभूमि को बचाने का समय है, कुछ करने का समय है। प्रदेश ने बहुत से सूरमाओं को पैदा किया है जिन्होंने देश और अपनी मिट्टी की रक्षा की है और कर रहे हैं, उन वीर सूरमाओं को सलाम लेकिन अब प्रदेश के हर नागरिक को अपनी मिटटी बचाने के लिए और प्रकृति को बचाने के लिए आगे आना होगा इसके लिए हर संभव कोशिश करनी ही होगी.. आइये अपने जंगल बचाएँ, खूब सारे पेड़ लगाएं। प्रदेश में बहुत से पर्यावरण प्रेमी हैं जो इस पुण्य कार्य में लगे हुए हैं, अगर आप अकेले नहीं कर सकते तो उन लोगों और संस्थाओ के साथ जुड़ कर इस पुण्य कार्य में हाथ बंटाइए। ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी बीती पीढ़ियों को पर्यावरण को नष्ट करने का दोष न दे सके।

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