GI Tag में शामिल हिमाचल प्रदेश की विश्वविख्यात पहचान

हिमाचल प्रदेश, अपने प्राकृतिक  संसाधनों के मायनों में काफी समृद्ध राज्य है। यहाँ प्रकृति  से उत्पन्न होने वाली बहुत से चीजे हैं जिन्हें दुनिया भर काफी पसंद किया जाता है। यहाँ आने वाले पर्यटक वापसी के दौरान यहाँ से ऐसी चीज़ें अपने साथ अपनों के लिए ले

जाते हैं। कई लोग ऑनलाइन तरीके से भी मंगवा लेते हैं। लेकिन यहाँ पर बहुत से चीजें ऐसी हैं जो यहाँ के  स्थानीय संसाधनों से यहाँ के स्थानीय लोग उत्पादित करतें हैं। ऐसी  ही कई प्राकृतिक और मानव उत्पादित चीजें हैं जो हिमाचल को विश्व पटल पर लातीं हैं और इसे लोकप्रिय बनाती हैं। आज के इस लेख में हम हिमाचल प्रदेश की ऐसी लोकप्रिय और विश्वविख्यात चीज़ों के बारे में आपको बताएँगे जो GI Tag प्राप्त हैं।  

पहले तो ये जानिए की GI  टैग क्या है। वास्तव में GI  Tag (Geographic Indication Tag ) एक प्रकार का Tag या Certificate है जो किसी देश, राज्य को या इसके व्यक्तियों या निर्माताओं के समूह को उनके विशिष्ट उत्पाद के लिए दिया जाता है। GI  Tag ( भागौलिक संकेत टैग ) GI टैग पंजीकरण और सरंक्षण एक्ट 1999 के अनुसार जारी किये जाते हैं 

            

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हिमाचल प्रदेश में अब कई वस्तुओं को GI Tag द्वारा एक अलग पहचान दिलाने के प्रयास किया जा रहें हैं जिनमे से यहाँ के  पारम्परिक परिधान, यहाँ की विशिष्ट फसलें, विशेष जानवरों  की नस्लें और यहाँ के पहाड़ी क्षेत्रों के विशिष्ट खाद्य पदार्थ शामिल हैं। जबकि हिमाचल प्रदेश के 8 उत्पाद पहले से GI Tag प्राप्त कर चुकें हैं।  इन्हीं 8 उत्पादों के बारे में आज हम बात कर रहें हैं :

कुल्लू शॉल :

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू अपनी ख़ूबसूरती वादियों के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है। लाखों घुमक्कड़ यहाँ घूमने के लिए आते हैं। कुल्लू अपने स्वादिष्ट सेब के अलावा कुल्लू शॉल और कुल्लू टोपी के लिए जाना जाता है। कुल्लू का शॉल यहाँ की स्थानीय  भेड़ की ऊन से, अंगोरा ऊन और याक  ऊन  से बनाये जाते हैं। ये शाल यहाँ के मेहनती हस्तशिल्पी कामगारों द्वारा पारम्परिक तरीके द्वारा कई कई दिनों की मेहनत से बनाये जाते हैं। जिस मशीन पर ये बनाये जाते हैं उसे खड्डी कहा जाता हैं जो लकड़ी की बनी हुई होती हैं। ताने बाने से शॉल बनता है कीमत हज़ारों से लेकर लाखों तक होती है। 


                                                                      


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चम्बा रुमाल :

जिला चम्बा अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए दुनिया भर में मशहूर है।  चम्बा में बने धातु  के बर्तन, आभूषण, चम्बा चप्पल, चम्बा चुख, चम्बा चित्रकला, चम्ब्याली संगीत के अलावा चम्बा  के रुमाल भी काफी विख्यात हैं।  चम्बा  सूती और रेशमी रुमाल पर ख़ूबसूरत कढ़ाई की गई होती है  इन पर कई तरह  उकेरे  जाते हैं। चम्बा  रियासत के दौरान यहाँ के शासकों  द्वारा सरंक्षित किये जाते रहे हैं। ये रुमाल विवाह शादी में , जन्मोत्सव पर और अन्य सांस्कृतिक अवसरों पर इस्तेमाल किये जातें हैं और उपहार के तौर पर भी प्रयोग किये जाते हैं। चम्बा रुमाल पूरी तरह से चम्बा हस्तशिल्प का शानदार नमूना है। इनकी कीमत कई हज़ारों तक है। ऑनलाइन मार्किट में आसानी से उपलब्ध हैं। 


                                                                        

Source : © Wikipedia


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काँगड़ा चित्रकला :

काँगड़ा अपनी ऐतिहासिक विरासतों, अपनी बलखाती घाटियों, ऊँची  ऊँची धौलाधार की पहाड़ियों, काँगड़ा चाय के बागानों के लिए विश्व में एक अलग पहचान  रखता है। इन सबके अलावा काँगड़ा की सैंकड़ो साल पुरानी चित्रकला के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ से बड़े बड़े कलाकारों ने दुनिया भर में नाम कमाया है। काँगड़ा शैली और बुसौहली शैली इस चित्रकला की शैलियां हैं। कागंड़ा चित्रकला का  मुख्या आधार हिन्दू धर्म के देवी देवता, रामायण और महाभारत के किरदार, प्रुरुषो और स्त्रियों  वेशभूषा आदि हैं। काँगड़ा के राजा, राजा संसार चंद  18 वीं शताब्दी से शुरू हुई इस चित्रकला  के माहिर और सरंक्षक थे। प्राचीन समय में ये चित्र हस्तनिर्मित कागज पर प्राकृतिक रंगो से  बनाये जाते थे। काँगड़ा से यह चित्र शैली बाद में मण्डी, सुकेत, अर्की,कुल्लू , नालागढ़ आदि  क्षेत्रों में भी फैल गई। 



                                                                        

Source : © wikipedia



किन्नौरी शॉल :

जिला किन्नौर अपने  किन्नौरी सेब, किन्नौरी टोपी, ढलानदार घाटियों के लिए प्रसिद्ध है। कुल्लू  शॉल की ही तरह किन्नौरी शॉल भी GI टैग प्राप्त हिमाचली उत्पाद है। किन्नौरी शॉल अपने सुन्दर डिजाईन और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। भेड़ की ऊन और पश्मीना से बने ये शॉल यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। देशी और विदेशी पर्यटक इन शॉल की खरीददारी करते हैं। मेहनत और गुणवत्ता के कारण ये काफी महंगे भी हैं। इन शॉल पर पहाड़ी डिज़ाइन उकेरे जाते हैं , जिनमें पहाड़ी शैली देखने को मिलती है।   


                                                                                  


Source : © exoticindiaart




काँगड़ा चाय, बासमती और काला  जीरा :

काँगड़ा चाय की महक पर दुनिया भर के लोग फ़िदा हैं। काँगड़ा में चाय के बागान हैं जहाँ चाय का उत्पादन  भारी मात्रा में  होता है। काँगड़ा की Green Tea काफी मशहूर है और देश विदेश में बिक्री के लिए उपलब्ध है। हिमाचली बासमती चावल ज्यादातर काँगड़ा, सोलन, मण्डी और सिरमौर में तैयार  होते हैं, ये चावल अपनी खुशबू और स्वाद के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। जब ये चावल पक रहें  हों तो दूर तक इनकी महक जाती है। लेकिन महंगाई और व्यवसायीकरण के इस दौर में यह बासमती कम ही उगाया जाता है। जिला किन्नौर और लाहुल स्पीति में पैदा वाला काला जीरा भी GI  Tag प्राप्त उत्पाद है। काला जीरा को औषध रूप में  प्रयोग किया जाता  है। इसकी खेती पारम्परिक रूप से की जाती है। 


 

                                  Tea Garden In Kangra            Photo: By the Author                 


     
हिमाचली चुली  तेल :

ज़िला लाहुल स्पीति व किन्नौर में जंगली खुमानी (Wild  Apricot ) से  तेल निकाला जाता है जिसे चुली तेल कहा जाता है। यह पूरी तरह से Organic तेल है , जो 10 से 11000 फुट की ऊंचाई पर हिमाचल के उच्चतम इलाकों में बनाया जाता है। इसमें विटामिन E बहुतायत मात्रा में पाया जाता है जो त्वचा के लिए काफी फायेदमंद माना जाता है। खाने में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु महँगा होने के कारण प्रचलन में कम ही है। इसे औषध रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 


                                                                         


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