KamruNag Temple |
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कमरुनाग झील |
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इस झील का इतिहास महाभारत काल के परमवीर योद्धा बर्बरीक से सम्बंधित है, जिन्होंने महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले भगवान् कृष्ण को अपना सिर अर्पण कर दिया था। बर्बरीक घटोत्कच के पुत्र और महाबली भीम के पौत्र थे। एक प्रचलित जनश्रुति के अनुसार, बर्बरीक ने अपनी माता से महाभारत के महायुद्ध में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर की और उनकी अनुमति ले कर युद्धक्षेत्र की तरफ चल पड़े , उनकी इच्छा थी कि वे कमज़ोर पक्ष का साथ देंगे। कृष्ण को इस बात का ज्ञान पहले से था. वे जानते थे कि हर हाल में कौरवों की सेना कमजोर है, इसलिए बर्बरीक कौरवों का ही साथ देगा, इसलिए कृष्ण ने अपनी लीला रचने के बाद अपना विराट रूप दिखाया और बर्बरीक से एक वचन या दक्षिणा की मांग की । तब अपने वचन के अनुसार बर्बरीक ने अपना सिर काट कर कृष्ण को भेंट कर दिया, उन्होंने महायुद्ध देखने की इच्छा जताई इस पर कृष्ण ने उनका सिर यहाँ कमराह की एक पहाड़ी पर रख दिया, जहां से वे युद्ध देख सकते थे, लेकिन, अभी भी, वो जिसकी भी ओर देखते, वही सेना जीतने लगती थी। इस पर कृष्ण ने उनका सिर पांडवो की ओर कर दिया।
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युद्ध समाप्त होने पर कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वे कलयुग में खाटूश्याम और कमरुनाग के रूप में पूजे जायेंगे। कुछ समय बाद स्वर्गारोहण के समय पाण्डव यहाँ रुके, तब कमरुनाग ने पानी पीने की इच्छा जताई तो भीम ने अपनी हथेली के वार से यहाँ इस झील का निर्माण किया। राजस्थान के सीकरी स्थान में भी इनका खाटुश्याम के रूप में पूजन किया जाता है और यहाँ हिमाचल प्रदेश के जिला मण्डी में देव कमरुनाग के रूप में जिला के अधिष्ठाता के रूप में पूजा जाता है , यहाँ इन्हे बड़ा देव के नाम से भी ख्याति प्राप्त है। मण्डी का ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेला देव कमरुनाग के यहाँ आगमन के बाद ही शुरू होता है।
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मण्डी से लगभग 55 किलोमीटर की दुरी पर स्थित कमरुनाग झील स्थित है। मण्डी से यहाँ आने के लिए चैलचौक, रोहांडा से होकर आया जा सकता है। अभी कुछ समय पहले ही यहाँ सड़क का निर्माण हुआ है जिस से यहाँ पहुंचना आसान हो गया है। सड़क बनने से पहले तक पहाड़ों को लांघ कर यहाँ लोग पहुँचते थे। यह पैदल यात्रा हिमाचल की दुर्गम यात्राओं में शुमार है। सड़क मार्ग से दोपहिया वाहनों द्वारा भी आया जा सकता है हालाँकि सड़क कच्ची और खतरनाक स्थिति में है। हम चैलचौक से होकर यहाँ पहुंचे, चैलचौक से करीब 15 -20 किलोमीटर आगे मन्डोगलू नाम का गाँव है यहाँ से कमरुनाग के लिए लिंक रोड है जहाँ से करीब 15 -20 किलोमीटर का सफर है।
समुद्रतल से लगभग 3350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र प्रकृति के समीप आने के लिए उपयुक्त क्षेत्र है। बेहद शांत यह इलाका ऊँची ऊंची खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहाँ देवदार के घने जंगल हैं जो बहुत सी प्रजातियों के जीव जन्तुओ की पनाह हैं, कई तरह की जड़ी बूटियाँ इन जंगलो में पाई जाती हैं। यहाँ हर समय ताज़ी और ठंडी हवाएं हर मौसम को सुहावना बना देती हैं। बरसात और हिमपात के मौसम में यहाँ आना काफी रोमांचकारी लेकिन खतरनाक साबित हो सकता है .
Herbs In Kamaru Vally |
जनश्रुति के अनुसार पाण्डव जब यहाँ से आगे बढ़े तो जाते समय उन्होंने अपने कुछ गहने इस झील में डाले।तभी से यहाँ इस झील में लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर या आस्था के चलते इस झील में सोने चाँदी के आभूषण, सिक्के और नोट डालते रहे हैं। झील में गहने, रूपए और धन दौलत डालने का यह क्रम हज़ारों सालों से चलता आ रहा है। बड़े बड़े राजा महाराजा अपनी मनोकामना पूरी होने पर सोना,चांदी, हीरे- जवाहरात इस झील में डालते थे। इस तरह से अब यह झील अरबों अरब रूपए के खज़ाने से भरी पड़ी है। इस अमूल्य ख़ज़ाने के मालिक और रक्षक स्वयँ, देव कमरुनाग हैं। इनकी इजाज़त के बिना कोई झील में पाँव तक नहीं रख सकता। सरकार तक को इस झील से रुपया पैसा बाहर निकालने की इज़ाज़त नहीं है। भारत को गुलाम बनाये रखने वाले अंग्रेज़ो के मन में भी ख़ज़ाने को लेकर लालच था लेकिन वो भी इस ख़ज़ाने को हाथ तक नहीं लगा पाए। झील के ख़ज़ाने को चुराने के इक्का दुक्का प्रयास भी विफल हो गए।
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अब तो सड़क बनने के बाद काफी आराम से कमरुनाग तक पहुंचा जा सकता है। मन्दिर के मुख्य गेट तक कोई भी वाहन पहुँच सकता है। यहाँ से बड़ा देव कमरुनाग मन्दिर की सीमा आरम्भ हो जाती है। इस सीमा के भीतर देवता के बनाये नियम और कानून मांनने पड़ते हैं जो देवता द्वारा स्वयं बनाये गए हैं। यहाँ देवता का ही कानून चलता है इसलिए सरकार भी यहाँ के ख़ज़ाने को नहीं निकाल सकती। कमरुनाग अपने नियम और उसूलों के पक्के हैं और यहाँ किसी की भी दखलंदाज़ी नहीं चलती।यह झील घने जंगल के बीचोंबीच स्थित है, पेड़ों के पत्ते इस झील में गिरते रहते हैं जिस कारण झील में गन्दगी हो जाती है, इसके अलावा झील में शैवाल और काई जम जाती है जिससे झील में काफी गन्दगी अक्सर देखी जा सकती है। देवता द्वारा बनाये गए नियमो के अनुसार, झील की सफाई उनके हुक्म के बिना नही की सकती। झील की सफाई देव कमरुनाग के आदेश से हर 3 से 5 साल के बाद की जाती है। देवता के इलाके के ऊपर से कोई विमान तक नहीं गुजरता। 90 के दशक में इन पहाड़ियों के ऊपर से गुजरता हुआ एक हवाई जहाज़ दुर्घटनाग्रस्त हो गया था ,जिसमे पंजाब और हिमाचल के राज्यपाल सुरेंदर नाथ और उनके सहयोगी का निधन हो गया था।
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वैसे तो यहाँ किसी भी मौसम में आया सकता है लेकिन यहाँ आना हो तो गर्मियों के मौसम में आना चाहिए क्योंकि यहाँ सर्दियों में भारी हिमपात होता है और काफी अधिक सर्दी होती है , बरसात के दिनों में पैदल रास्ते कीचड से भरे होते हैं ,ऐसे में पाँव फिसल जाने का रिस्क रहता है। कहीं कहीं दोनों ओर गहरी खाइयाँ हैं। साथ ही यहाँ घना कोहरा पड़ता है जिस कारण आगे का रास्ता नहीं दिख पाता , बहुत से लोग इन पहाड़ियों में रास्ता भटकने के बाद जंगली जानवरों का शिकार बन चुके हैं। गर्मियों का मौसम यहाँ आने के लिए अच्छा है क्योंकि मौसम साफ़ होता है, दिन भी लम्बे होते हैं और यहाँ की ताज़ा हवाओं और सुन्दर फ़िज़ाओं में गर्मी का भी एहसास नहीं हो पाता। यह क्षेत्र सेब (Apple) के लिए भी जाना जाता है। देश भर में यहाँ से सेब और सब्जियों की आपूर्ति क जाती है। हिमाचल प्रदेश के अलावा अन्य राज्योँ के पर्यटक और विदेशी पर्यटक भी यहाँ आते रहते हैं। यहाँ से शिकारी देवी और सरोआ में जालपा मन्दिर भी जाया जा सकता है। जंजैहली की खूबसूरत वादियों की सैर भी यहाँ से की जा सकती है।
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कमरुनाग मन्दिर में सारा साल लोगो का आना जाना लगा रहता है , लेकिन गर्मियों में आने वालो की संख्या में काफी वृद्धि देखी जाती है। जुलाई के महीने में यहाँ मेले का आयोजन होता है, इसमें लाखों श्रद्धालू यहाँ आते हैं। इस प्राचीन झील में रूपया पैसा और गहने डालते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने का वरदान देवता से मांगते हैं। कुछ समय पहले तक यहाँ पशु बलि का भी रिवाज़ था, जिसमे दो दिवसीय मेले के दौरान हज़ारो बकरों की बलि यहाँ दी जाती थी,लेकिन अब बलि विरोधी कानून बनने के बाद यहाँ देवता कमरुनाग को जीवित बकरे ही चढ़ाये जाते है। जिला मण्डी में देव कमरुनाग बारिश के देवता माने जाते हैं, जब कभी देव नाराज़ हो जाते हैं तो जिला में ,बारिश की कमी हो जाती है या लम्बे समय तक जब पानी धरती पर नहीं आता तो लोग देवता से विनती करते हैं ,कभी कभी तो जिला प्रशासन के अधिकारी व ज़िलाधीश को देवता को मनाना पड़ता है। हर साल जिला मण्डी के अन्तर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में देव शिरकत करते हैं , लेकिन जहां अन्य कुछ देवी देवताओ को छोड़कर सभी देवी देवता ऐतिहासिक पड्डल में चल रहे मेलों के शोभा बढ़ाते हैं, देव कमरुनाग टारना नामक स्थान में माता श्यामाकाली मन्दिर में ठहरते हैं।उस दौरान सभी देवी देवता और जनता, देव कमरुनाग के दरबार में हाज़िरी लगाने टारना अवश्य आते हैं। मेलो में शिरकत करने के बाद बहुत से लोग आशीर्वाद लेने के लिए देवता को अपने घर या कार्यस्थानो पर भी बुलाते हैं। 1 -2 महीनों के बाद देव अपने स्थान को लौट जाते हैं।
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