Himachal Inside, District of Himachal Pradesh Mandi, मण्डी हिमाचल प्रदेश

                                                                                     

मण्डी  Selfi Point 
                                                                                
व्यास नदी के किनारे बसा हुआ, हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख नगर "मण्डी"। जिसे यह नाम ऋषि "माण्डव्य" से मिला।मांडव्य ऋषि ने यहां लम्बे समय तक कठोर तपस्या की थी इसलिए मण्डी को मांडव्य नगर के नाम से भी जाना जाता है। मण्डी हिमाचल प्रदेश का केंद्र बिंदु है, जो लंबे समय से हिमाचल का मुख्य व्यापारिक संस्थान रहा है। मण्डी के रास्ते ही लेह, लद्दाख और अन्य स्थानों को सामान की आपूर्ति की जाती रही है और आज भी यहां के बाजारों से दूर-दूर तक सामान की आपूर्ति की जाती है। मण्डी शहर हिमाचल के बड़े बाज़ारों में गिना जाता है। चूँकि "बाज़ार" का एक नाम "मण्डी " भी होता है, एक ये भी कारण है जिस से इस शहर का नाम मण्डी पड़ा। इस नगर को एक और नाम से भी जाना जाता है, "छोटी काशी"। यहां के लोग बड़े गर्व से कहते हैं, "काशी" में अस्सी  मन्दिर हैं जबकि मण्डी में इक्कासी "। 

                                                 
                                                         




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मण्डी रियासत की स्थापना राजा बाहु सेन ने 1200 ईस्वी में की थी और बाद में 1520 में राजा अजबर सेन ने मण्डी नगर की स्थापना की थी। वास्तव में ये बंगाल के राजपूत राजा थे जो पांडवों के वंशज चंद्रवंशी राजाओं के वंशज माने जाते हैं। बाहु सेन के वंशज राजा अजबर सेन ने, जो एक कुशल शासक माना जाता था, अपनी राजधानी पुरानी मण्डी से बदल कर मौजुदा राजमहल के आस-पास के क्षेत्र में कर दी। मण्डी के कुशल शासकों में, श्याम सेन, गौर सेन, सिद्ध सेन, सूरमा सेन, जालम सेन, बलवीर सेन आदि कई नाम हैं जिन्होंने मण्डी में कई मन्दिरों, स्मारकों, का निर्माण करवाया। राजा विजय सेन ने मण्डी में विद्यालय, सड़क, अस्पताल, डाकघर आदि बनवाए। मंडी जिला का मुख्य डाक घर राजमहल के एक भवन में ही है। इस मुख्य कार्यालय का पिन कोड 175001 है। कांगड़ा से मण्डी होते हुए कुल्लू सड़क मार्ग, और पुरानी मण्डी से मण्डी शहर को जोड़ने वाला विक्टोरिया पुल (ब्रिज) 1877 में उन्हीं के शासन काल में निर्मित है। ये पुल उस समय की ब्रिटिश इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमुना है।

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गुप्त अमरनाथ : इस वीरान इलाके की विशाल गुफ़ा में निवास करते हैं शिव ll Shiv Gufa Dharali
       

                                                 

मण्डी जिला 15 अप्रैल 1948 को मण्डी और सुकेत रियासतों को मिलाकर बनाया गया था। मण्डी जिला का मुख्यालय मण्डी शहर में ही है। यहां जिलाधीश कार्यालय, सत्र न्यायालय और अन्य छोटे बड़े सरकारी कार्यालय हैं। मण्डी जिला की 17 तहसीलें हैं: सदर मण्डी, जोगिंदरनगर, सरकाघाट चच्योट, सुंदरनगर, करसोग, थुनाग, औट, कोटली, धर्मपुर, निहरी, पधर, बलद्वाड़ा,बल्ह, बालीचौकी, लडभड़ोल, संधोल। मण्डी की 15 उपतहसीलें हैं जिनमें आशला, कटौला, टिहरा, ढलवान, डेहर, थाची, पांगणा, बागचुनोगी, बगशैड, भदरोटा, मकरीडी, मण्डप, रिवालसर, छतरी, और टिक्कन।  हाल ही में मण्डी जिला को कुल्लू, हमीरपुर, मण्डी, बिलासपुर जिला का क्षेत्रीय मुख्यालय बनाया गया है।
                                             
2011 की जनगणना के अनुसार मण्डी जिला की आबादी 10,92,370 है और कुल क्षेत्रफल 3,950 वर्ग किलोमीटर है जो कि हिमाचल के कुल क्षेत्रफल का  7.10% है। मण्डी, समुद्र तल से 3425 फीट की ऊंचाई पर है। 1950 में मण्डी  नगर पालिका का गठन किया गया था, उसके बाद नगर परिषद का गठन हुआ और साल अक्टूबर 2020 में मण्डी शहर को नगर निगम का दर्ज़ा हासिल हुआ है।



                                         
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मण्डी नगर चारों ओर से छोटी बड़ी पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिससे ये देखने में कटोरे के आकार का क्षेत्र लगता है। मोतीपुर धार, रेहड़ धार, टारना की पहाड़ियाँ, गंधर्व क्षेत्र के पहाड़ों की तराई में व्यास नदी में मिलने वाली सुकेती और सकोडी दो छोटी नदियां हैं। बरसात के मौसम में व्यास और इसकी सहायक नदियों का पानी उफान पर होने से खतरा बढ़ जाता है। मण्डी जिला भूकम्प की दृष्टि से भी असुरक्षित क्षेत्र की श्रेणि में आता है। यहाँ का मौसम ऋतु आधारित है। गर्मियों के मौसम में तेज़ गरमी, गरमी के मौसम के बाद बरसात का मौसम जनमानस में नई ताजगी भर देता है, चारों ओर हरियाली और रौनक दिखती है सर्दी के मौसम सफ़ेद बर्फ की शीत लहरें शहर को कम्पकंपा देती हैं। गर्मी के मौसम में अधिकतम तापमान 36 से 42 डिग्री सेल्सियस, सर्दियों में 26 से 16 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज़ किया जाता है। मण्डी शहर आने का सबसे सही और उपयुक्त समय अक्टूबर से जून है।

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मण्डी जिला में बहुत से देखने और घूमने फिरने योग्य जगहें हैं, मण्डी शहर में ही बाबा भूतनाथ का प्राचीन मंदिर है जो 1527 में राजा अजबर सेन ने बनवाया था, पंचमुखी शिव का पंचवक्त्र मन्दिर जो व्यास और सुकेती नदी के किनारे पर निर्मित है, व्यास नदी के उस पार त्रिलोकी नाथ (1520 में राजा अजबर सेन द्वारा निर्मित) भोले शंकर का एक और मंदिर है, पंचवक्त्र और त्रिलोकीनाथ दोनों आमने सामने व्यवस्थित हैं, जिन्हे भारतीय पुरातन विभाग द्वारा सरंक्षित किया गया है। मण्डी को छोटी काशी भी कहा जाता है और शिव भूमि भी। क्योंकि यहां भगवान शिव के प्राचीन काल के मन्दिर हैं, जिनमें सुविख्यात महामृत्युंजय मंदिर, अर्धनारीश्वर मंदिर शामिल हैं। मण्डी शहर के साथ लगते रिवालसर नामक कसबे को, हिंदू, सिख और बौद्ध तीन धर्मों का पवित्र संगम स्थल माना गया है। यहां हिंदू धर्म के मंदिर, सिख धर्म का प्राचीन गुरुद्वारा और बौद्ध धर्म के मंदिर हैं जिन्हें देखने के लिए देशी और विदेशी लोग आते रहते हैं। यहां बौद्ध गुरु पदम संभव की विशाल प्रतिमा है, जो दूर से ही देखने वालों का मन मोह लेती है। यहाँ एक प्राकृतिक झील है। रिवालसर को वेद-पुराणों में तीर्थ-स्थल माना गया है। मण्डी से 16 किमी दूर मण्डी-कुल्लू मार्ग में पंडोह नामक कस्बे में व्यास नदी पर बांध बनाया गया है जिसके चारों ओर रमणीय जगह है। इस बांध से एक नहर निकाली गई है जो सुंदरनगर के डैहर नामक स्थान में सतलुज नदी से मिलती है, जहां बिजली का उत्पादन किया जाता है। पंडोह से 15-16 किलो मीटर आगे औट नामक स्थान पर एक लंबी सुरंग है, जिस में से गुजर कर कुल्लू-मनाली का सफर पूरा होता है। अब चंडीगढ़ मनाली नेशनल हाईवे बन गया है यह हाईवे फोरलेन है जो मण्डी जिला से होकर गुजरता है इस फोरलेन में बहुत सी सुरंगे अब बनाई गयीं हैं जिनमे से सफर करना बहुत ही रोमांचपूर्ण है। जंजैहली गांव जो कि अभी भी पर्यटन की दृष्टि से अछूता है बहुत ही खूबसूरत इलाका है यहां शिकारी माता का मंदिर है जिसकी बिना छत की केवल दीवारें हैं। यहां साल के 6 महीने बर्फ ही पड़ी रहती है, इसी पर्वत के दुसरी ओर मण्डी जिला के आराध्य देव कमरूनाग का प्राचीन मंदिर है। देव कमरूनाग को प्राचीन काल के बर्बरीक और राजस्थान में खाटू श्याम के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ एक प्राकृतिक झील है. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालू यह रूपया, पैसा, सोने चांदी के आभूषण झील में डालते हैं, इस झील में कितना खजाना है, कोई नहीं जानता। मण्डी से 45 किलो मीटर दूर ऋषि पराशर की पावन निवास स्थली है जहां ऋषि ने तपस्या कर प्राकृतिक झील बना दी। पराशर झील सुमद्रतल से लगभग 2750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस झील के पानी में तैरते हुए दो छोटे-छोटे टापू हैं जो हर 6 महीनों के बाद अपनी दिशा बदलते हैं। हर साल ऋषि की यादों में यहाँ जुलाई महीने में मेले लगते हैं। देव कमरूनाग और पराशर में भी मेलों के दौरान अनगिनत बकरों की बलि प्रथा पर अब प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के बाद रोक लगा दी गई है। प्रदेश में बलि-प्रथा सैंकड़ों साल से चली आ रही थी। प्रदेश के लगभग सभी देवी देवता न्यायालय के फैसले से सहमत हैं। मण्डी में सिख धर्म के 3 मुख्य गुरुद्वारे हैं जिनमें से एक गुरुद्वारा नील धारी समुदाय का है, एक गुरुद्वारा नाम धारी समुदाय का और एक गुरुद्वारा अकाली समुदाय का है। मण्डी में 2 मस्जिद हैं. जिनमें एक राम नगर और एक जेल रोड में है। बौद्ध धर्म के हिमाचली और तिब्बती लोग भी यहां निवास करते हैं। सब धर्मो के लोग यहां मिलजुल कर रहते हैं, मण्डी सब धर्मो के भाई-चारे का अनोखा प्रतीक है। मण्डी के लोग खुशमिज़ाज़, घूमने फिरने और खाने पीने के शौकीन हैं। मण्डी एक उल्लास पूर्ण स्थान है जो सबके लिए सुरक्षित स्थान भी है।

                                                       
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शिवरात्रि महोत्स्व 


मण्डी जिला हिमाचल का सबसे तेजी से विकसित होने वाला जिला है। एनएच-20, एनएच-21, एनएच-70 मण्डी में एक दूसरे से जुड़ते हैं, इस तरह मण्डी जिला हिमाचल को पंजाब और जम्मू-कश्मीर से जोड़ने में मुख्य द्वार की भूमिका निभाता है। जिला मुख्यालय और क्षेत्रीय मुख्यालय होने से मण्डी शहर संपूर्ण जिले और राज्य के लिए व्यापार और वाणिज्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। मण्डी जिला की 75% जनसंख्या परोक्ष या अपरोक्ष रूप से कृषि से अपनी आजीविका कमाती है। जिला के मैदानी क्षेत्र गेहूं, धान, मक्का, सब्जी, रेशम के लिए जाने जाते हैं, और ऊंचाई वाले क्षेत्र उच्च गुणवत्ता वाले फलों, दालों, चाय, मशरूम व सब्ज़ी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। जिला के किसान दूध उत्पदान में भी अव्वल हैं। मण्डी जिला के "चक्कर" नामक स्थान में हिमाचल सरकार द्वार निर्मित मिल्क प्लांट में रोजाना दूध जिला के हर क्षेत्र के पशुपालकों से ख़रीदा जाता है,जहां विभिन्न दूध उत्पाद बनाए जाते हैं। मण्डी जिला के द्रंग और गुम्मा स्थान में नमक की खदानें हैं जो भारत की एकमात्र खदान हैं। इन खदानों में पिछले कुछ समय से उत्पन फिल्हाल बंद है। नमक की खदानें मण्डी जिला के अलावा पाकिस्तान में भी हैं। मण्डी के जंजैहली, बरोट, और सिराज घाटी में ट्राउट मछली फार्म चलाये जा रहे हैं, यहां से देहली, पंजाब, हरियाणा सहित दूसरे राज्यों को मछली की आपूर्ति की जाती है। मण्डी के पहाड़ी क्षेत्र में जड़ी-बूटियों का भी उत्पादन होता है, इनमें से कुछ नाम शतावरी, एलोवेरा, गुडूची, अमलतास, नाग केसर, नाग छतरी, गुच्छी आदि हैं, 


पड्डल ग्राउंड मण्डी जिला का ऐतिहासिक मैदान है, राजा महाराजा के समय से यहां विभिन्न गतिविधियां होती जा रही हैं, वो चाहे खेलों का आयोजन हो या मेलों का। भारत-पाक कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर कृष्ण चंद के नाम पर इस मैदान का नामकरण हुआ है। मण्डी के विश्वविख्यात अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्स्व का आयोजन यहीं पर किया जाता है। ये मैदान मण्डी शहर के लोगों के दिल में बसता है। मैदान में क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, बास्केट बॉल, वॉलीबॉल जैसे खेल प्रतियोगिताएं होती रहती हैं। मैदान के साथ ही मण्डी का सरदार वल्लभ डिग्री कॉलेज और नवनिर्मित सरदार वल्लभ विश्वविद्यालय भी है। कॉलेज की  स्थापना 1948 में हुई थी। और विश्वविद्यालय की स्थपना साल 2022 में की गई। कॉलेज कैंपस में ही इग्नू का भी क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र भी है। पड्डल मैदान के साथ ही है मण्डी शहर का इंटर स्टेट बस टर्मिनल (आईएसबीटी) जहां से एचआरटीसी, पंजाब रोडवेज, हरियाणा रोडवेज और निजी (प्राइवेट) बसें चलती हैं। यहां से मात्र 5 मिनट की दूरी पर सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का गुरुद्वारा है। गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने यहां एक चट्टान पर तपस्या की थी। यह चट्टान कोलसरा चट्टान के नाम से जानी जाती है। कहते हैं मण्डी  शहर को गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त है। मान्यता अनुसार, "गुरु गोबिंद सिंह जी के औरंगजेब के साथ युद्ध में मण्डी के राजा और जनता ने गुरु जी का साथ दिया, उनकी सेवा से प्रसन्न हो कर गुरु जी ने मण्डी शहर को हमेशा शांति और खुशहाल रहने का आशीर्वाद दिया। आज भी गुरुद्वारा साहिब में  गुरु जी का साज-ओ-सामान सरंक्षित और सुरक्षित है, जिसमें "गुरु जी का पलंग", उनका एक वाद्ययंत्र और युद्ध का सामान आदि है। यहां से 100 मीटर पर ही भिउली ब्रिज है जो पठानकोट सड़क मार्ग (एनएच-20) को चंडीगढ़-मनाली ( NH-21) से जोड़ता है, सुरक्षा, व्यापार, यात्रा, हर एक पहलू से ये पुल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि NH-21 ही हिमाचल को जम्मू और कश्मीर से जोड़ता है पुल के साथ ही माता भीमा काली का भव्य मंदिर है। बैसाखी के दिन यहां मेला भी लगता है। मन्दिर के गर्भ गृह में माता की पाषाण कालीन प्राचीन मूर्ति है। मन्दिर प्रबंधन द्वारा बच्चों के लिए पार्क भी बनाया गया है जिसमें सुबह शाम लोगों का ताँता लगा रहता है। यही सड़क मार्ग पथिक को भिउली से पुरानी मण्डी ले जाता है, जहां भगवान शिव का त्रिलोकी नाथ मंदिर है। इसके अलावा यहां शीतला माता, वटुकनाथ के भी प्राचीन मंदिर हैं। पुरानी मण्डी वही स्थान है जहां से राजा अजबर सेन  ने अपनी राजधानी वर्तमान राजमहल के आस पास के क्षेत्रो में हस्तांतरित कर दी थी। पुरानी मण्डी ताज़े और शीतल जल की बावड़ियों के लिए काफी प्रसिद्ध है। ये इलाका एनएच-20 के किनारे बसा हुआ है यहां से विक्टोरिया पुल पार कर ऐतिहासिक चौहट्टा बाजार, सेरी बाजार होते हुए वापस शहर के बाकि स्थानों में पहुंचा जा सकता है। 

हिमाचल प्रदेश का जिला मण्डी वाकई में बहुत सुन्दर और रमणीय जगह है जहाँ पर घूमने फिरने के लिए बहुत से स्थान हैं अगर आप यहाँ आना चाहें तो कभी भी बरसात के मौसम को छोड़कर किसी भी मौसम में आ सकते हैं।  


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