चम्बा, हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत जिला है,जिसका अधिकांश भू-भाग पहाड़ी क्षेत्र है, जो कांगड़ा जिला के उत्तर-पश्चिम, लाहुल-स्पीति जिला के पश्चिम-उत्तर और दक्षिण में, और जम्मू-कश्मीर के दक्षिण, पूर्व में है। चम्बा जिला ग्रेटर हिमालय और भीतरी हिमालय पर्वत श्रृंखला के अंतर्गत आता है, जिसमें धौलाधार, पीर-पंजाल और जास्कर पर्वतमालायें आती हैं, चम्बा शहर (नगर) चम्बा जिला का प्राचीन स्थान है जो पौराणिक नदी 'रावी' के किनारे बसा हुआ है। चम्बा जिला अपनी प्राकृतिक सुन्दरता, कला, संस्कृति और धार्मिक दृष्टि से सारे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुका है।
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भारत के गिने चुने स्थानों में चम्बा एक है जिसका प्राचीन इतिहास आज भी सहेज कर रखा गया है। चम्बा के अधिकांश भाग हिमाचल प्रदेश के "अति दुर्गम" और जनजातीय क्षेत्र हैं जो पहली शताब्दी में हिमाचल की "कोली" जाति के लोगों का आवास स्थान था, पहली शताब्दी तक ये लोग कबीले बना कर रहते थे, धीरे-धीरे कबीलों के सरदार शक्तिशाली होने लगे। सीमा विस्तार के चाह में शक्तिशाली सरदार दूसरे कबीलों पर शासन करने लगे और इस तरह "कोली" शासन का आरंभ हुआ, लेकिन दूसरी शताब्दी में हिमाचल प्रदेश की अन्य जाति "खस" के लोगों ने "कोली" शासकों को हराकर क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया। चौथी और पांचवीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के दौरान ठाकुर और राणा जाति के शासकों ने खस शासन काल का अंत कर दिया। वर्तमान के चम्बा शहर को 920 ईसवी में उस समय के राजा साहिल वर्मा ने अपनी राजधानी बनाया जिसे उसने अपनी बेटी का नाम दिया "चंपावती", जो आज "चम्बा के नाम से हमारे सामने है।
राजा साहिल वर्मा के उत्तराधिकारियों ने लम्बे समय तक चम्बा में राज किया, चम्बा जो कि एक रियासत बन चुका था, कभी भी मुगल सल्तनत के अधीन नहीं हुआ। साल 1641 से 1664 तक चम्बा के राजा रहे राजा पृथ्वी सिंह मुग़ल शासकों की तरह ही अपने दरबार को सजाते थे, इन्होने "मुग़ल-राजपूत कला और कलाकृतियों को चम्बा में बढ़ावा दिया। उन्नीसवी शताब्दी के आरंभ में गोरखाओं ने चम्बा पर आक्रमण किया जिसमें गोरखा फौज जीत गई। उस समय राजा संसार चंद एक साथ दो युद्ध लड़ रहे थे वे एक तरफ गोरखाओं से और दूसरी तरफ लाहौर के राजा रणजीत सिंह के साथ। लेकिन कुछ शर्तों की बुनियाद पर या किन्ही अन्य कारणों से राजा रणजीत सिंह ने राजा संसार चंद के आग्रह पर उनका साथ गोरखाओं के विरुद्ध दिया, 1806 से 1809 तक चले युद्ध में गोरखा हार गए। जीत के बदले में राजा संसार चंद ने कांगड़ा का किला, कुछ जागीर, और धन राजा रणजीत सिंह को दिया। चम्बा और आस-पास के क्षेत्रो को राजा रणजीत सिंह ने अपने कब्जे में ले लिया। 1985 में सिख सेना ने ब्रिटिश फौज पर हमला किया और युद्ध में हार गई। इसके बाद अंग्रेजों का राज कायम हुआ। ब्रिटिश काल में चम्बा में काफी विकास कार्य किया गया। 1863 में यहां पहला "डाकघर" खोला गया, 1866 में पहला प्राथमिक विद्यालय खोला गया, और कई सड़क मार्ग बनाये गए । 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद होने के बाद 15 अप्रैल 1948 को चम्बा को प्रदेश के साथ मिला दिया गया। वर्तमान में चम्बा जिला का मुख्यालय चम्बा में ही है।
चम्बा एक पर्वतीय क्षेत्र है जिनकी ऊँचाई 2,000 से 21,000 फीट तक है, ये पर्वत और पहाड़ क्षेत्र में घाटियों का निर्माण करते हैं इसलिए जिला में बहुत सी घाटियाँ हैं इसलिए जिला चम्बा को "चम्बा घाटी" के नाम से भी जाना जाता है। चम्बा का कुल क्षेत्र 6,522 वर्ग किलोमीटर है।चम्बा की कुल जनसंख्या 5,19,080 है और जिस में से 2,61,320 पुरुष हैं। लिंगानुपात 986 महिला प्रति 1000 पुरुष है, समय के साथ-साथ कबाइली क्षेत्र अब दूसरे जिलों के मुकाबले काफी तेजी से प्रगति कर रहे हैं। यहाँ औसत साक्षरता दर 72.17 है। चम्बा की आधिकारिक भाषा हिंदी है जिसके साथ-साथ पहाड़ी (चंबयाली) का भी अधिकतर प्रयोग होता है। यहाँ हिंदू, मुस्लिम और सिख धर्म के लोग हैं, चंबा की गद्दी, गुज्जर आदि जातियां एसटी की श्रेणी में आती हैं जो सर्दियों में अपने पशु सम्पदा के साथ निचले मैदानी इलाकों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश का रुख करते हैं और गर्मी का मौसम आने पर वापस अपने क्षेत्र में आ जाते हैं। पशु पालन के अलावा यहां के लोग कृषि पर निर्भर हैं। सब्जियाँ और फल यहाँ की फसलें हैं।
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बेताल गुफा II मण्डी हिमाचल II पत्थर से घी टपकता था यहाँ II Betaal Cave, Sundernagar
बेताल गुफा मण्डी शहर से 25 किलोमीटर दूर सुंदरनगर के प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर से कुछ ही दूरी पर है। यह एक प्राकृतिक गुफा है जिसके बीचोंबीच एक छोटी सी नदी बहती है इसका शोर आने वाले को कुछ देर के लिए डरा देता है। देखें वीडियो :चम्बा अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत संजोए हुए है, जिसमें यहां के लोगों का रहन सहन, रीति-रिवाज, लाजवाब कला कृतियां, बेजोड़ चित्रकला है जो देश विदेश में प्रसिद्ध है। चम्बा अपने हथकरघा उद्योग के लिए पहचाना जाता है, जिसमें चम्बा रुमाल, पहाड़ी डिजाइन का कढ़ाईदार कपड़ा, चम्बा चप्पल, शॉल, ऊनी टोपी आदि प्रमुख हैं। चम्बा की चित्रकला (पेंटिंग्स) मुगल काल से संरक्षित हैं, रियासत काल में भी राजा महाराजा लोग कला और कलाकारों को खुश होकर पुरस्कार देते थे। निक्कू राम, मियां जारा सिंह, लेहरू राम आदि उन्हीं कलाकारों में से कुछ हैं जिनके बनाए हुए चित्र (पेंटिंग्स) आज भी लोगों का मन मोह लेते हैं। चम्बा में पीतल, काँसा, चांदी से बने संगीत-यंत्र और सजावटी सामान को भी काफी लोकप्रियता हासिल है, जिनमें पहाड़ी शैली का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। बॉलीवुड के संगीत निर्देशकों ने कई फिल्मों में चम्बा के पहाड़ी संगीत का प्रयोग किया है जो लोगों को काफी पसंद आया है। घाटी का संगीत दिलों को छूने वाला है। लैला-मजनूं, हीर-रांझा की ही तरह चंबा के "कुंजू और चंचलो" की प्रेम गाथा भी काफी लोकप्रिय है जिन पर आधारित यह लोकगीत, "कपड़े तां धोवा छम छम रोवां कुंजुआ", बहुत ही सुंदर धुन पर बनाया गया है जिसे आज भी बहुत लोकप्रिय माना जाता है। "चम्बा का चौगान" विश्व प्रसिद्ध है, इसी मैदान में चम्बा का अंतर्राष्ट्रीय मेला "मिंजर मेला", और "सुही मेला" का आयोजन किया जाता है। हज़ारों लोग प्रतिवर्ष हिमाचल के अन्य जिलों, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा और दूसरे राज्यों से चम्बा में स्थित मणिमहेश झील से शिव की मणि के दर्शन करने आते हैं, यह झील हिमाचल में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है।
चम्बा के बहुत से स्थान पर्यटकों को लुभाने वाले हैं। चम्बा के खजियार, भरमौर, डलहौजी, पांगी, मणिमहेश झील, चंपावती मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, चौरासी मंदिर, चामुंडा देवी मंदिर, अखंड चंडी जैसे पुराने राजा महाराजाओं के महल, राजा भूरी सिंह संग्रहालय को देखने के लिए हर साल लाखों पर्यटक चम्बा आते हैं।
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