Himachal inside, District of Himachal Pradesh Bilaspur, बिलासपुर हिमाचल प्रदेश


जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश के पश्चिम दिशा में सतलुज नदी के किनारे बसा हुआ क्षेत्र है जो प्रदेश के बारह ज़िलों में से एक है। बिलासपुर की सीमा जिला, मण्डी, सोलन, हमीरपुर और ऊना की सीमाओ से मिलती है जबकि पश्चिम-दक्षिण में पंजाब की सीमा से जुड़ता है। क्या दिशा से बिलासपुर हिमाचल का मुख्य प्रवेश द्वार है। बिलासपुर चंडीगढ़-मनाली NH-21 प्रति चंडीगढ़ 136 किमी है। बिलासपुर निम्न हिमालय पर्वत शृंखला की शिवालिक पर्वत श्रृंखला के अंतर्गत आता है। बिलासपुर का यह क्षेत्र कम ऊंचाई की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। समुद्र तल (समुद्र तल) से जिला की कुल ऊंचाई 673 मीटर है। जिला का कुल जनसंख्या 3,82,000 (2011) है जबकी कुल क्षेत्र 1167 वर्ग। किलोमीटर है, बिलासपुर जिला का मत्स्य उत्पादन राज्य में प्रथम स्थान है। बिलासपुर गोविंद सागर झील के लिए काफी प्रसिद्ध है जो सतलुज नदी पर बनी है, इसका निर्माण 1962 में पूरा हुआ।


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बिलासपुर का क्षेत्र किसी समय पंजाब राज्य के अधीन था, बिलासपुर जिले का इतिहास काफी प्राचीन है। प्राचीन समय में बिलासपुर को व्यासपुर के नाम से जाना जाता था, लेकिन बिलासपुर जिले का व्यास नदी से कोई संबंध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि बिलासपुर के प्रारंभिक शासक, जो खुद को चंद्रवंशी राजपूत शासकों के उत्तराधिकारी मानते थे, मध्य प्रदेश के बुंदेल क्षेत्र साम्राज्य के चंदेरी क्षेत्र से संबंध रखते थे जो चंदेल वंश राजपूत थे। उन्ही के वंशजों ने सतलुज नदी के किनारे ऋषि व्यास के नाम से पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र को "व्यासपुर" नाम दिया, जहां प्राचीन समय में ऋषि व्यास ने निवास किया था, जो आज बिलासपुर के नाम से जाना जाता है। मुगल काल के दौरान यह क्षेत्र छोटी छोटी रियासतों के रूप में फैला हुआ था जिनकी सीमाएं आज के पंजाब राज्य से लगती थीं। ब्रिटिश काल में बिलासपुर का क्षेत्र "कहलूर" के नाम से जाना जाता था जो एक रियासत थी और आजादी के बाद राजतंत्र समाप्त हुआ और 1948 को यह क्षेत्र भारत के मुख्य आयुक्त (चीफ कमिश्नर) के अधीन हो गया। उस समय तक हिमाचल प्रदेश अपनी 30 रियासतों को मिला कर एक राज्य के रूप में स्थापित हो चुका था जिसके 4 जिले थे चंबा, मण्डी, महासू और सिरमौर।1 जुलाई 1954 को बिलासपुर हिमाचल प्रदेश के जिला के रूप में अस्तित्व में आया।

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बिलासपुर जिला का मुख्यालय बिलासपुर शहर में ही है। विकास कार्यों में सुविधा के लिए जिला को 2 भागों (2 सब डिवीजन) में बांटा गया है, एक बिलासपुर और दूसरा घुमारवीं। 2011 की जनगणना के अनुसार बिलासपुर की कुल 8 तहसील और उपतहसील हैं जिनमें झंडूता, बिलासपुर सदर, घुमारवीं, नैना देवी, नम्होल, कलौल, हरलोग और भराड़ी हैं। जिला में 3 नगर पालिका समितियां और 1 नगर पंचायत है। बिलासपुर की कुल आबादी 3,81,956 है जिसमें से 1,92,764 पुरुष हैं। बिलासपुर का लिंगानुपात 981 है। जिले का कुल क्षेत्र 1167 वर्ग कि.मी. है। प्रति व्यक्ति घनत्व 327 है। शिक्षा के क्षेत्र में जिला काफी आगे है, यहां कुल 84.59% लोग साक्षर हैं। बिलासपुर कृषि प्रधान क्षेत्र है यहां की कुल आबादी में 61.77% लोग कृषि कार्यों से आजीविका कमाते हैं। बिलासपुर जिले में कुल 1061 गांव  हैं जिनमें से 953 गांव रिहायशी  हैं और 108 गांव गैर रिहायशी (गैर-आबाद) हैं जिनमें कुल 100 गांव में पीने की सुविधा है। जिला में हिंदू, मुस्लिम, सिख धर्म के लोग निवास करते हैं, जिला हिंदू बहुल क्षेत्र है। केहलूरी और पहाड़ी बोली यहां की स्थानीय बोलियां हैं जबकि हिंदी और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी किया जाता है।

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बिलासपुर का क्षेत्र जो प्राचीन राजा महाराजाओं द्वारा साल 1663 में बसाया गया था, अपने आप में ऐतिहासिक है। साल 1954 में जिला में सतलुज नदी पर भाखड़ा बांध का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो 1962 पूरा हुआ जिसमें सतलुज नदी का पानी रुक गया और यहां विशाल झील का निर्माण हुआ जिसे सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम से "गोबिंद सागर झील" नाम मिला। जैसे जैसे झील में जल स्तर बढ़ने लगा, क्षेत्र के अधिकांश गांव और शहर जल-मगन होने लगे, इस तरह पुराना बिलासपुर शहर पूरी तरह जलमगन हो गया। इतिहास बन चुके कुछ मन्दिर आज भी मौजूद हैं जो ज़मीन में धंस चुके हैं। उस समय उपरी क्षेत्रों में नये शहरों और गांवों का बसाव शुरू हुआ। बिलासपुर जिले में ही एशिया का सबसे ऊंचाई वाला पुल (एशिया में ऊंचाई वाला पुल) है जो जिले के कंदरौर नामक स्थान पर सतलुज नदी पर निर्मित है इसकी कुल ऊंचाई 80 मीटर है और यह पुल 280 मीटर लंबा है, यह पुल बिलासपुर जिले को हमीरपुर जिला से जोड़ता है। बिलासपुर में घूमने फिरने के बहुत से स्थान हैं जिनमें राजा महाराजाओं के महल और किले हैं, प्राचीन काल के मन्दिर हैं, बिलासपुर के बंदला क्षेत्र में पैराग्लाइडिंग का भी आयोजन किया जाता है यह स्थान पैराग्लाइडिंग के लिए काफी प्रसिद्ध है।

बिलासपुर के देवली नामक स्थान पर मत्स्य पालन विभाग दवारा साल 1962 में मत्स्य प्रजनन केंद्र खोला गया जहां महासीर, मिरर कार्प आदि किस्मों की मछली का बीज तयार किया जाता है और किसानों को उपलब्ध  करवाया जाता है और कुछ बीज गोबिंद सागर झील में डाला जाता है। गोबिंद सागर झील मत्स्योत्पादन के लिहाज़ से काफी महत्तवपूर्ण है। झील से कई लोगों की आमदनी चलती है। बिलासपुर जिला से हिमाचल और अन्य राज्यों को मछली की आपूर्ति की जाती है। विभाग द्वार किसानों के लिए बहुत से योजनाएं शुरू की गई है जिनका लाभ किसान और मछली पालक उठा रहे हैं। साल 2000 में बिलासपुर के बरमाणा नामक स्थान पर "कोल डैम" परियोजना का निर्माण कार्य का शुभारम्भ प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी द्वारा हुआ, जो 2015 में पूरा हुआ। यह परियोजना बिलासपुर और मण्डी की सीमाओ पर बनाई गई है। कोल डैम परियोजना में विद्युत उत्पादन किया जाता है, इसकी उत्पादन क्षमता 800 मेगावाट। है. क्या विद्युत परियोजना का उद्घाटन  प्रधान मंत्री श्री. नरेंद्र मोदी द्वारा 18 अक्टूबर 2016 को किया गया। जिला में एक क्रिकेट ग्राउंड है जिसके लुह्नु क्रिकेट ग्राउंड के नाम से जाना जाता है यहां जिला और राज्य स्तर के मैच खेले जाते हैं।                                              

बिलासपुर में कुछ स्थान काफी प्रसिद्ध हैं, उत्तरी भारत का प्रसिद्ध "माता नैना देवी" मंदिर जो हजारों लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है, हिमाचल के अलावा देश विदेश के लाखो लोग यहां नैना देवी का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। नैना देवी मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, यह स्थान "51 शक्तिपीठो" में से एक है। नैना देवी के लिए रोप वे से भी पहुंचा जा सकता है। यहां से गोबिंद सागर झील का मनोरम नजारा देखने को मिलता है। बाबा बालक नाथ मंदिर, ऋषि मार्कंडेय मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, केहलूर का किला, त्यून किला आदि बिलासपुर के प्रसिद्ध स्थान हैं। बिलासपुर में प्रतिवर्ष राज्य स्तर के "पशु मेला" का आयोजन किया जाता है जिसे स्थानिय भाषा में "नलवाड मेला" कहा जाता है, जिसे हिमाचल के अलावा पंजाब से भी पशुओ के क्रेता (खरीदार) और विक्रेता आते हैं और लाखों रुपये का कारोबार करते हैं। हर साल सावन के महीने में नैना देवी मंदिर में मेले का आयोजन होता है
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