लाहुल और स्पीति, हिमाचल प्रदेश का एक बहुत खूबसूरत जिला है, जो प्रदेश के दुर्गम क्षेत्र में से एक है। जिले की समुद्र तल से ऊँचाई 4500 से 6000 मीटर है। हिमाचल के उत्तर-पूर्व में बसा हुआ लाहुल स्पीति कबाइली क्षेत्र (जनजातीय क्षेत्र) की श्रेणी में आता है
जिसकी राज्य सीमायें चम्बा, कांगड़ा, कुल्लू और किन्नौर से लगती हैं,राष्ट्रीय सीमायें जम्मू-कश्मीर से और अन्तर्राष्ट्रीय सीमा चीन और तिब्बत से सटी हुई हैं, इस कारण से भारत की सुरक्षा के लिए लाहुल-स्पीति का काफी महत्व है। स्पीति को फॉसिल गार्डन भी कहा जाता है। स्पीति की एक चोटी को भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम की याद में "माउंट कलाम" का नाम मिला है।
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The Salt Valley.. Mandi, Himachal Pradesh वास्तव में लाहुल और स्पीति दो अलग-अलग क्षेत्र हैं, जो 17 शताब्दी में लद्दाख के शासकों के हाथ में थे और बाद में लद्दाख साम्राज्य के विघटन के बाद कुल्लू के अधीन हो गए। 18 शताब्दी में पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने कुल्लू के साथ-साथ लाहुल का क्षेत्र भी युद्ध में जीत लिया। एंग्लो-सिख युद्ध के बाद लाहुल और स्पीति का भू-भाग अंग्रेजों के अधीन हुआ, जिन्होनें लाहुल और स्पीति को कांगड़ा जिला के उपमुख्यालय कुल्लू के अंतर्गत माना। साल 1960 में लाहुल और स्पीति को हिमाचल प्रदेश का जिला बनाया गया।
लाहुल-स्पीति को शीतल मरुस्थल के रूप में भी जाना जाता है, जिसके सूखे और हरियाली रहित पर्वत साल भर बर्फ से ढके हुए रहते हैं। भूगौलिक परिस्थितियों के लिहाज से यहां जीवनयापन काफी मुश्किल है। जिले का कुल क्षेत्र 13,833 वर्ग किलोमीटर है और 2011 की जनगणना के अनुसार कुल आबादी 31,564 है, लाहुल स्पीति क्षेत्र की दृष्टि से हिमाचल का सबसे बड़ा जिला है। जिला का लिंग अनुपात 916 /1000 है और कुल साक्षरता दर 76.81 है। लाहुल-स्पीति जिला का मुख्यायल केलांग में है, केलांग जिले का सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है। यहीं से मनाली-लेह सड़क मार्ग है। भारत-तिब्बत सीमा यहां से करीब 120 किलोमीटर है। प्राचीन समय से स्थानिय लोग और तिब्बत के लोग यहां वहां आते जाते रहते हैं जिस से लाहुल के लोगों की संस्कृति और परम्पराएं, लद्दाख और तिब्बत के लोगों से मिलती जुलती हैं। लाहुल और स्पीति में हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मो के लोग निवास कर रहे हैं। लाहुल-स्पीति के लोग तिब्बत के लोगों के संगोत्र हैं जिन्हें भोट नाम से भी जाना जाता है। लाहुल-स्पीति में हिंदू देवी देवताओं के मंदिर भी हैं और बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल भी हैं। बौद्ध धर्म को मानने वाले विदेशी लोग भी यहाँ आते रहते हैं। प्राचीन समय में सम्राट अशोक ने भी लाहुल स्पीति में बौद्ध धर्म का काफी प्रचार और प्रसार किया। लाहुल-स्पीति का सारा भू-भाग बहुत शान्त इलाका है, इसलिए यहां बौद्ध धर्म के कई मठ और गोम्पा हैं जहां बौद्ध भिक्षु लोग तपस्या में लीन रहते हैं जिन्हें लामा कहा जाता है। हिंदू धर्म से जुड़े पर्यटन स्थल व विख्यात मन्दिर यहां हैं जिनमें भगवान शिव का प्रसिद्ध त्रिलोकी नाथ मंदिर और अवोलिक्तेश्वर मन्दिर मुख्य हैं।
लाहुल-स्पीति का मौसम बेहद शीत है क्योंकि साल भर यहां पहाड़ों पर बर्फ पड़ी रहती है, लाहुल स्पीति में साल भर में केवल 170 मिलीमीटर तक बारिश होती है जबकि बर्फबारी भारी मात्रा में होती है, जिस कारण यहां लोगों का जीवन बहुत मुश्किल भरा है। लाहुल और स्पीति के लोगों का रहन सहन काफी साधारण है। लाहुल और स्पीति के अधिकांश भागों में बहुपति प्रथा प्रचलित थी जो अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। जिला के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि, पशुपालन है। यहां प्रमुख रूप से आलू, मटर, गेहूं की खेती की जाती है इसके अलावा काला जीरा, हॉप्स, कुथ आदि यहां की नकदी फसल हैं, जिले के पहाड़ी इलाकों में शिलाजीत और करीब 62 किस्म की जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। ज़िला में भेड़ बकरी के अलावा यहां के लोग याक, अंगोरा खरगोश पालन भी करते हैं। लाहुल के वनों में बर्फानी तेंदुआ, कस्तूरी मृग, भालू, आइबेक्स आदि पशु पाए जाते हैं लेकिन अवैध शिकार के कारण अब इन वन्य प्राणियों की संख्या में गिरावट दर्ज़ की जा रही है। ज़िला में पिन वैली नेशनल पार्क, किब्बर वन्य जीव अभ्यारण्य हैं जिनमें भांति भांति के जीव जंतु पाए जाते हैं।
भारत की प्राचीन नदियों में से व्यास नदी का उद्गम स्थल भी लाहुल-स्पीति के रोहतांग नाम के स्थान में है जिसे व्यास कुंड के नाम से जाना जाता है। नदी का नाम तेजस्वी ऋषि व्यास के नाम पर पड़ा व्यास नदी यहां से निकल कर लगभग 470 किलोमीटर का सफर कर के सतलुज नदी में मिलती है। लाहुल-स्पीति में व्यास के अलावा चंद्र-भागा नदियां हैं जो आगे चल कर जम्मू कश्मीर में चिनाब नदी के नाम से जाना जाता है। पिन, स्पीति आदि नदियां सहायक नदियां हैं जो बाद में सतलुज और चिनाब के साथ मिलती है।
लाहुल स्पीति में प्राकृतिक झीलें हैं जो अपनी खूबसूरती के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं उनमें चंद्रताल, सूरज ताल, ढेकरछोह आदि मुख्य हैं जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई 2800 से लेकर 4800 मीटर है। लाहुल और स्पीति के दर्रे और पर्वत चोटियां हमेशा से ही ट्रैकिंग के शौकीनों को लुभाती रही हैं। साहसी खेल के शौकीन लोगों के लिए जिला स्वर्ग से कम नहीं। स्कीइंग, ट्रैकिंग, राफ्टिंग, याक सफारी आदि खेल आयोजनों में देश विदेश के लोग हिस्सा लेते हैं। पर्यटन की दृष्टि से जिला के काजा, हिक्किम, कॉमिक, लोसर, नाको, ताबो, प्राङ्गला, केलोंग, कुंजुम, रोहतांग, पिन वैली आदि स्थान देखने योग्य हैं।
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