Himachal Inside: District of Himachal Pradesh, Kangra कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

कांगड़ा, हिमाचल का दुसरा सबसे बड़ा और बेहद खूबसूरत जिला है जो हिमाचल प्रदेश की पश्चिम दिशा में हिमालय, शिवालिक, धौलाधार और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला में 5,739 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कांगड़ा जिला की समुद्र तल से उंचाई 427 मीटर से 5000 मीटर तक है। कांगड़ा जिला प्रदेश के सबसे अधिक 6 जिलों की सीमा से जुड़ा है। 

                                              
Himachal Inside, Kangra कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

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जिला कांगड़ा उत्तर दिशा में चंबा और लाहुल-स्पीति, पूर्व दिशा में कुल्लू और मण्डी, दक्षिण दिशा में ऊना, हमीरपुर और मण्डी जिला की सीमा से जुड़ा है जबकि पश्चिम दिशा में पंजाब राज्य से कांगड़ा जिला की सीमा लगती है। कांगड़ा जिले की धौलाधार की पहाड़ियां लगभग पुरा साल मानो बर्फ की सफेद चादर से लिपटी रहती हैं। यहाँ का मौसम और वातावरण यहां आने वाले हर सैलानी को स्वर्ग जैसी अनुभूति करवाता है। कांगड़ा जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। हज़ारों लाखों देशी और विदेशी लोग यहाँ  घूमने फिरने के लिए आते हैं। कांगड़ा को "देवभूमि" भी कहा जाता है, यहाँ उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठ ब्रजेश्वरी माता, चामुण्डा देवी, माँ बगलामुखी और अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थान हैं। कांगड़ा का क्षेत्र भूगौलिक दृष्टि से एक घाटी का निर्माण करता है जिस कारण कांगड़ा को कांगड़ा घाटी भी कहते हैं।

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कांगड़ा का इतिहास वैदिक कालीन है। कांगड़ा जिला प्राचीन समय में नगरकोट और भीमकोट नाम से जाना जाता था। भारत के प्राचीन ऋग्वेद में क्षेत्र में बहने वाली अरिजिकिया नदी (व्यास नदी) का उल्लेख हुआ है। प्राचीन भारत के महान ग्रंथकार और संस्कृत व्याकरण की रचना करने वाले "पाणिनि " ने भी अपने लेख में प्राचीन नगरकोट (कांगड़ा) राज्य का उल्लेख किया है। पाणिनि काल में हिमाचल 2 भागों में विभाजित था त्रिगर्त गणसंघ और कुनिन्द गणसंघ (राज्य)। त्रिगर्त गणसंघ के भी 2 भाग थे, पश्चिम में सिवि गणसंघ और उत्तर में कुरु गणसंघ। वर्तमान का कांगड़ा क्षेत्र कुरु गणसंघ में था। महाभारत के युद्ध में कौरवों का पक्ष लेने वाले राजा सुशर्म चंद्र  ने "कटोच राजवंश" की स्थापना की थी जो इस राज्य के शासक थे। उस समय यह क्षेत्र भीमकोट के नाम से भी जाना था। कटोच राजवंश को दुनिया का सबसे पुराना राजवंश माना जाता है। वेदों के अनुसार आर्य लोगो के यहां आने से पहले अनार्य आबादी के लोग यहां निवास करते थे। राजा हर्षवर्धन के शासन काल में भारत देश का अध्ययन करने वाले चीनी लेखक हैंत्सांग के अनुसार राजा हर्षवर्धन ने कांगड़ा के क्षेत्र तक अपना विस्तार कर लिया था। इसके बाद कांगड़ा के किले पर बाहरी शासकों के आक्रमण शुरू हुए जिनमे महमूद गजनी (1009), फिरोज शाह तुगलक (1360), शेर शाह सूरी, अकबर आदि नाम हैं। अकबर ने अपने मंत्री टोडरमल को इस क्षेत्र का जागीरदार बना दिया था। इनके अलावा सिख, गोरखा और बाद में ब्रिटिश लोगों की घुसपैठ से यहां काफी नुक्सान हुआ जबकि कुछ शासकों ने यहां बहुत से निर्माण कार्य करवाए। कांगड़ा के कुछ प्रसिद्ध राजाओ में राजा विधि चंद, राजा संसार चंद, सुशर्म चंद, राजा खड़क चंद, राजा महेश चंद आदि हैं । 1846 में अंग्रेजों ने कांगड़ा के किले पर अपना अधिकार कर लिया और देश के आजाद होने तक कांगड़ा उनके हाथों में रहा। आजादी के बाद कांगड़ा जोकि तब तक पंजाब की सीमा के अंतर्गत था, नवंबर 1966 में हिमाचल प्रदेश में शामिल कर लिया गया और एक जिले के रूप में सामने आया।


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कांगड़ा अपनी लाजवाब प्राकृतिक सुंदरता, चित्रकला और लाजवाब चाय के लिए प्रसिद्ध है। कांगड़ा की खूबसूरती देश विदेश के प्रयासों को अपनी तरफ  आकर्षित करती हैं, धौलाधार की पहाड़ियां पूरा साल बर्फ से ढकी रहती हैं जिससे यहां मौसम सुहावना बना रहता है।  सरदार सोभा सिंह की चित्रकला आज भी लोगों के दिल में स्थान बनाए हुए है। कांगड़ा की प्राचीन "पहाड़ी चित्रकला" राजा संसार चंद के शासन काल से लेकर आज तक सरंक्षित है। कांगड़ा की चित्रकला के नमूने राजा संसार चंद म्यूजियम में देखे जा सकते हैं। कांगड़ा का मौसम चाय की खेती के लिए अनुकूल है। यहां चाय के बहुत से बागीचे हैं जो लोगो की कमाई का साधन हैं। कांगड़ा चाय (ग्रीन टी) का आनंद दुनिया भर से यहां आने वाले लोगों ने उठाया है। कांगड़ा की देहरा गोपीपुर तहसील में बड़ी बड़ी चट्टानों को काट कर मन्दिर बनाए गए हैं जिन्हे मसरूर रॉक कट टेंपल्स के नाम से जाना जाता है, ऐसा माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण पांडवो द्वारा अज्ञातवास के दौरान किया गया था। भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता को यह मंदिर समर्पित है। इन मन्दिरों को हिमालयन पिरामिड भी कहा जाता है। इन मन्दिरों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में शामिल किया गया है। साल 1905 में विनाशकारी भूकम्प के कारण कांगड़ा की काफी धरोहर सम्पदा को नुक्सान पहुंचा था।


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कांगड़ा जिला का मुख्यालय 1955 तक कांगड़ा ही था लेकिन बाद में इसे तहसील धर्मशाला में स्थानान्तरित कर दिया गया। वर्तमान समय में कांगड़ा जिला के कुल 10 उपमुख्यालय हैं: कांगड़ा, धर्मशाला, नूरपुर, देहरा, जयसिंहपुर, पालमपुर, बैजनाथ, ज्वालामुखी, फतेहपुर, ज्वाली। कांगड़ा की कुल 40 तहसील और उपतहसील है। 2011 की जनगणना के अनुसार  कांगड़ा जिले की कुल आबादी 15,07,223 है जिसमें से 7,59,484 महिलाये हैं। कांगड़ा का लिंग अनुपात 1012/1000 है। जनसंख्या के लिहाज से कांगड़ा हिमाचल का सबसे बड़ा जिला है और क्षेत्र के लिहाज से प्रदेश का दुसरा सबसे बड़ा जिला है। जिला का कुल क्षेत्र 5,739 वर्ग किलोमीटर है, कांगड़ा प्रति व्यक्ति घनत्व 263 /वर्ग किमी है। जिला की शिक्षा दर 86.67% है। यहाँ  हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई और बौद्ध धर्म के लोग निवास कर रहे हैं। हिंदुओं में यहां राजपूत जाति के लोग ज्यादा हैं जिनमे कटोच, ठाकुर, पठानिया, जसवाल, कटवाल, गुलेरिया आदि हैं। धर्मशाला के मैक्लोडगंज, चौंतड़ा, बीड़ बिलिंग, सिद्धबाडी में बौद्ध धर्म के मंदिर और अन्य धार्मिक स्थान हैं जहां पर्यटकक जाना पसंद करते हैं। धर्मशाला से ही तिब्बत की निर्वासित  सरकार अपनी गतिविधि चलाती है। बौद्ध गुरु दलाई लामा का निवास स्थान मैक्लॉडगंज में ही है। हिंदू धर्म के प्रसिद्ध मन्दिर यहां हैं जिनमें ज्वाला जी, देवी चामुंडा मंदिर, माता ब्रजेश्वरी मंदिर, भागसूनाग मंदिर, बैजनाथ मंदिर आदि यहां के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां हर साल लाखों  लोग आते हैं।

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कांगड़ा जिला किसी समय प्लास्टिक सर्जरी का भी केंद्र माना जाता था। यहाँ कभी राजा महाराजा और अन्य शाही लोग प्लास्टिक सर्जरी करवाते थे। कुछ अपने चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने के लिए और कुछ वो लोग जो युद्ध में घाव लगने से कुरूप हो जाते थे। कान को सुंदर बनाने के लिए यहां प्लास्टिक सर्जरी की जाती थी इसलिए कांगड़ा का नाम कांगड़ा हुआ। कांगड़ा का अर्थ हुआ "कान + घड़ना"। कांगड़ा में हिंदी, अंग्रेजी कांगड़ी और पंजाबी भाषा का प्रयोग होता है। कांगड़ा घाटी की स्थान बोली कांगड़ी है जो पंजाबी भाषा से मिलीजुली है। यहां के लोग काफी मिलनसार किस्म के हैं। पशुपालन, कृषि, बाग बगीचे, पर्यटन यहां के लोगों की आमदनी  के मुख्य स्त्रोत हैं। यहां के पुरुष का मुख्य पहनावा कुर्ता पायजामा और महिलाओं का पहनावा सलवार कमीज है जो समय के साथ बदल रहा है और यह पहनावा अब खास तौर पर लड़के और लड़कियों में पैंट शर्ट और टी शर्ट का रूप ले रहा है। कांगड़ा के लोगों का इतिहास काफी गौरवपूर्ण रहा है, यहां से अधिक लोग राजशाही के दौरान और आजादी के बाद भी सेना में अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते हैं। भारतीय सेना के कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन सौरभ कालिया, ब्रिगेडियर शेर जंग थापा, मेजर सुधीर वालिया आदि विभिन्न लड़ाइयो में देश के लिए शहीद हुए हैं। पठानकोट-जोगिंदरनगर रेलवे लाइन कांगड़ा से होती गुजरती है, गग्गल एयरपोर्ट कांगड़ा के लिए नज़दीकी एयरपोर्ट है जबकि  सड़क मार्ग से भी कांगड़ा पहुंचा जा सकता है।


"भूलोक के सभी लिंगों से अलग : यहाँ है असली शिवलिंग ll शिव गुफा, गुटकर, मण्डी, हिमाचल"



                                                 

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